Book Title: Ath Shatkalyanak Nirnay
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 2
________________ जिवन 77 ओम्॥ ॥ नमः श्रीवईमानाया ॥ अथ षट् कल्याणक निर्णय अब श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणकोंका निर्णय करके तत्वाभिलाषी पुरुषोंकोदिखातांहूं सो जैसे हरवर्षपर्युषणाके व्याख्यान में वर्तमानिक श्रीनपग इके अनेक महाशय अधिकमामकी गिनती निषेध करने के लिये उत्सूत्रमाषणोंसे कुयुक्तियों करके भेजीवोंको मिथ्यात्वके भ्रममें गेरनेका परिश्रम करतेहुवे संसारमद्धिका प्रय नही रखते हैं और मिथ्या बातको सत्य ठहराने के लिये खंडन मंटन करके वादविवादसे धर्मकार्यों में विघ्नकारक झगठा बढ़ाकर कर्मबंधकेहेतु करते है तैसेही श्री वीरमभुके छ कल्याण कोंका निषेध करनेके लिये भी पंचांगीके अनेक शास्त्रोंके पाठोंको प्रत्यक्षपने उत्थापन करके उत्सूत्र भाषणांसे कुयुक्तियोंका संग्रहकरके बालजीवाको मिथ्यात्वके भ्रममें गेरनेका कार्यकरके संसारद्विकाहेतु भूत महान् अनर्थ करते हैं और धर्मकार्यों में विघ्नकारक खंडनमंहन करके अपनी कल्पित बातकेजमाने के लिये पर्युषणाके ध्याख्यानमें शासन नायक श्रीवीरप्रभुकीखास अवज्ञाकरके शासनप्रेमियोकंदिलमें वहा रंज उत्पन्न करते हुये अपना तथा अपने गच्छकदाग्रहियांका सम्यकत्वको नष्ट करनेका उद्यम करते जिन्हों के उपगारकेडिये तथा भव्यजीवों को सत्यबातम निःसंदेह होनेके लिये और पौजिनाज्ञा इच्छुक तत्वाभिलाषी पुरुषोको सत्या सत्यका निर्णय दिखानेके लिये पंचांगीके अनेक शास्त्रप्रमाणपूर्वक न्यायकी युक्तियांके अनुसार श्रीवीरप्रभुके छ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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