Book Title: Ashwadhatikavya Author(s): Nilanjana Shah Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ 60 व्यर्थ अने तुच्छ दर्शावी पछी राम, शिव, पार्वती, कृष्ण वगेरेना विशेष गुणोनो विशेषणो मारफत निर्देश करी, आत्यंतिक कल्याण माटे तेमने शरणे जवान कहे छे. आ काव्यनो ढूंक सार नीचे प्रमाणे छे : काव्यना कर्ता क्यारेक पौत्रने, क्यारेक पोताना मनने संबोधीने उपदेश आपे छे पण खरेखर तो तेओ ए निमित्ते संसारमा गळाडूब खूपेला मनुष्यमात्रने उपदेश आपे छे. घर, पत्नी, पुत्रादिक वगेरे परनो माणसनो मोह अनर्थकारी छे. ए बधा दुन्यवी संबंधो प्रत्ये तेमज विषयोपभोगो तरफनी आसक्तिथी मनुष्य संसारमा फसाईने तेमना दोषोनुं चिंतन करतो नथी के आ बधुं नाशवंत छे. स्त्रीस्वभावनी चंचळता दर्शावीने, कवि तेमना प्रत्येक आकर्षणथी दूर रहेवानी सलाह पौत्रने आपे छे अने स्पष्ट कहे छे के स्त्रीओ साथेनी प्रेमक्रीडामा रममाण रहेनार मनुष्य पशु जेवो छे. द्रव्य मेळववानी लालसाथी चारित्र्यहीन लोको, ऐश्वर्यशाळी राजाओ अने धनथी छकी गयेला उदंड धनिको - आ बधानी गुलामी करीने, तेमना द्वारा थयेलुं अपमान खमीने, तेमनो निर्दय मार खाईने पण मनुष्य खरा अर्थमां अकिंचन रहे छे. ते ज प्रमाणे संपत्ति कमावा मनुष्य विविध नगरो अने द्वीपोमां रझळपाट करी, प्रखर ताप अने तेने परिणामे थती अतिवृष्टि वेठीने छेवटे तो वृद्धावस्था वहोरे छे. जो तेनी पासे संपत्ति होय तो ते संपत्तिनी रक्षा करवा तेने खूब चिंता अने संताप वेठवो पडे छे. __ आ बधी आफतोमांथी उगरवा, मोहना प्रपंचनी पेले पार जवा, यमराजना भयमांथी बचवा अने आ लोक तेमज परलोक- हित साधवा माटे पौत्रने समजण आपी सतेज थवानुं तथा दुर्जनोनो संग छोडी दईने राम, कृष्ण, शिव अने पार्वतीने शरणे जवानुं कहे छे. पुनरुक्तिनो दोष वहोरीने पण आ कवि वारंवार कहे छे के आत्मकल्याण साधवा माटे मोक्षसुख पामवा माटे नम्रभावे परमात्माने शरणे जq ए ज एकमात्र उपाय छे. आ काव्यना प्रकार विशे विचारीए तो प्रथम दृष्टिए तेनुं स्वरूप उपदेशात्मक काव्यनुं देखाय छे, छतां तेनो वधारे अभ्यास करतां लागे छे के ते स्तोत्रकाव्यनी वधु नजीकनुं लागे छे. पोताना पौत्रने ईश्वराभिमुख करवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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