Book Title: Ashtmangal Geet Gunjan
Author(s): Saumyaratnavijay
Publisher: Shilpvidhi Prakashan

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Page 5
________________ अष्टमंगल माहात्म्य घोषणा । तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरिं बहवे अट्ठमंगलगा पन्नत्ता, तंजहा-सोत्थियसिरिवच्छ-नंदियावत्त-वद्धमाणग-भद्दासण कलस-मच्छ-दप्पणा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरुवा । : अनुवाद: ये विशिष्ट स्वरुपवान अशोकवृक्ष के उपर अनेक संख्या में अष्टमंगल है, जो इस प्रकार से : (१) स्वस्तिक, (२) श्रीवत्स, (३) नंद्यावर्त, (४) वर्धमानक, (५) भद्रासन, (६) पूर्णकलश, (७) मीनयुगल और (८) दर्पण ये प्रत्येक अष्टमंगल सर्वरत्नमय है । आकाश एवं स्फटिक जैसे अत्यंत स्वच्छ एवं पारदर्शक है । अत्यंत सुकोमल स्पर्शवाले पुद्गलों से बने हुए एवं अच्छी तरह से पॉलीस कीये हुए ऐसे कोमल मृदु स्पर्शयुक्त है। उसमें स्वाभाविक तो कोई रज-धूल नही है, उपर से भी जरा सी भी धूल नही जमी है । उसमें कोई छोटा-मोटा दाग भी नहीं है । अद्भूत कांतियुक्त एवं चारोंकोर तेजकिरणे फैलातें ऐसे ये अष्टमंगल अपने आसपास की वस्तुओं को भी प्रकाशित करते है । ये अष्टमंगल चित्त को संतुष्टि प्रदान करनेवाले, मन को प्रसन्न करनेवाले, बार-बार दर्शन करने योग्य, हरेक को पसंद आ जाये ऐसे विशिष्ट आकारवाले है। ये अष्टमंगल के दर्शन से.... श्रमणसंघका मंगल होजो...चतुर्विधसंघ का मंगल होजो... जैनसंघ का मंगल होजो...विश्वमात्र का मंगल होजो... जय जय होजो... मंगल होजो...

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