Book Title: Ashtmangal Geet Gunjan
Author(s): Saumyaratnavijay
Publisher: Shilpvidhi Prakashan

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Page 11
________________ ६. पूर्णकलश नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । दोहा : पूर्णकलश से पूर्णता, दूर हो जाय विभाव । हृदय कलश शुभ भाव जल, पूरण आत्म स्वभाव ।। मंत्र : ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्हं नमः । सकलश्रीजैनसंघस्य सर्वतः सर्वदा सर्वप्रकारेण सुख-शांति - ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धि - श्रेयोऽर्थं पूर्णकळशमंगलदर्शनमिति स्वाहा । * (राग - मालकोश) आनंद आनंद मंगल हो - 2 निज का मंगल, पर का मंगल, संघ में मंगल, विश्व में मंगल; आनंद आनंद मंगल हो ... पूर्णकलश भावों से बधायें, तन मन मंगल, जीवन मंगल; आनंद आनंद मंगल हो ... * पूर्णकलश (तर्ज ज्योति कलश छलके....) : पूर्णकलश चमके.... 2 शीतल निर्मल सुखकारी जल, सौरभ से महके पूर्णकलश.... पूर्णकलश है पुण्य खजाना, जिन - जननी को स्वप्न सुहाना, मल्लिनाथ प्रभुका लंछन, करुणा जल छलके... E पूर्णकलश... पूर्णकलश को आज बधायें, मंगलमय जीवन को बनायें, पूर्णस्वरूप आतम का पायें, अभिवादन करते.. पूर्णकलश....

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