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पर्युषणा पर्व में या अन्य अवसर पर श्रीसंघ को
अष्टमंगल के दर्शन करवाते समय गाने योग्य दोहे व गीतों का अनूठा संग्रह
अष्टमगल
गीतगुंजन
संकलन : मुनि सौम्यरत्न विजय
Shilp-Vidhi
शिल्पविधि, 11, बोम्बे मार्केट, रेल्वेपुरा, अहमदाबाद-380005.
094265 85904 X shilp.vidhi@gmail.com प्रस्तुत पुस्तिका एवं ओडियो गीत ओनलाईन पाए।
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Shilp-Vidhi
શિલ્પવિધિ પ્રકાશન
જૈન શિલ્પ વિધાન
(ભાગ-૧,૨)
શિલ્પશાસ્ત્રો, વર્તમાન પરંપરા તથા અનુભવી વિદ્વાનો-શિલ્પીઓના અનુભવના નિચોડરૂપ શાસ્ત્રીય શિલ્પગ્રંથ
જિનાલય નિર્માણ માર્ગદર્શિકા (ગુજ., હિન્દી)
મંદિર નિર્માણ તેમજ શ્રી સંઘમાં વારંવાર ઉપયોગી ઓપ-લેપ-ચક્ષુ-ટીકા, દેવ-દેવીઓની સ્વતંત્ર ધ્વજા, લેખ, લાંછન વગેરે અનેક બાબતો માટે વ્યવહારિક, સ્પષ્ટ અને સચોટ, પારદર્શક માર્ગદર્શક વ્યવહારિક શિલ્પગ્રંથ
હેમકલિકા-૧
શ્રી અઢાર અભિષેક વિધાન
૧૮ અભિષેક સંબંધી અનેક રહસ્યો, વિધાનશુદ્ધિ, દૃષ્ટાંતો, ભકિતગીતો, સ્તુતિઓ સભર ૨૦૦થી વધુ પ્રાચીન પ્રતિષ્ઠાકલ્પાધારે સંપાદિત વિધિ ગ્રંથ
હેમકલિકા-૨
શ્રી ધારણાગતિયંત્ર
જે તે સંઘ કે વ્યકિત માટે સંઘ કે ગૃહમંદિરમાં કચા ભગવાન પધરાવવા વધુ લાભદાયી છે એ જોવા માટેના કોષ્ટક સ્વરૂપ ગ્રંથ
શાશ્વત જિન પ્રતિમા સ્વરૂપ
આગમગ્રંથોને આધારે દેવલોકમાં રહેલ શાશ્વત જિન પ્રતિમાનું સચિત્ર વર્ણન
Coming Soon > હેમકલિકા-૩
જિનાલય નિર્માણ વિધિવિધાન
મંદિરનિર્માણના પ્રારંભથી અંત સુધીમાં કરવાના શિલ્પશાસ્ત્રોકત સર્વ વિધાનો...
ધ્વજા સંહિતા
મંદિરના શિખરે સોહતી ધ્વજાના સંદર્ભમાં અનેક અવનવી માહિતિ સાથેનો રેફરન્સ ગ્રંથ
श्री बृहद् धारणायंत्र एवं श्री धारणागति यंत्र (हिन्दी)
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अष्टमंगल दोहे
अष्टमंगल का आलेखन एवं श्री संघ को दर्शन कराते वक्त निम्नोक्त दोहे बोल सकते है । * अष्टमंगल
अष्टमंगल के दर्श से, श्रीसंघका उत्थान | विघ्न विलय सुख संपदा, मिले मुक्ति वरदान || 1. स्वस्तिक :
धर्म चार स्वस्तिक वदे, दान - शील- तप-भाव | चार गति के नाश से, प्रगटे आत्म स्वभाव || 2. श्रीवत्स :
श्रीदाता श्रीवत्स की, महिमा अपरंपार । ऋद्धि वृद्धि सुमति दीये, अक्षय गुण भंडार ॥ 3. नंद्यावर्त :
चरमावर्त चरम शरीर, चरम जन्म उपहार । नंद्यावर्त प्रभाव से, सीमीत हो संसार ।। 4. वर्धमानक :
विद्या विनय विवेक का, वैभव हो वर्धमान । वर्धमानक से पुण्य बल, कीर्ति यश सन्मान || 5. भद्रासन :
भद्रासन मंगल करे, दर्श से दुरित विनाश | भद्रंकर कल्याणकर, आतम ज्ञान प्रकाश ।। 6. पूर्णकलश :
पूर्णकलश से पूर्णता, दूर हो जाय विभाव । हृदय कलश शुभ भाव जल, पूरण आत्म स्वभाव || 7. मीनयुगल :
प्रीत प्रभु से मैं करूं, नीर संग ज्युँ मीन । पर से नाता तोड के, चित्त प्रभु
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8. दर्पण :
दर्पन हो उत्कर्ष का, अर्पण का परिणाम । दर्पण में दर्शन करूँ, निर्मल आतमराम || * प्रेम-भुवनभानुकृपा, सूरि जय हेमाशिष । अभय अनंत पद में नमें, नित संस्कार का शीष ।।
दोहे एवं गीत रचना : सा. श्री संस्कारनिधिश्रीजी म.सा.
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अष्टमंगल माहात्म्य घोषणा जो तो उचित अवसर पर सकल श्रीसंघके मंगल हेतु परम श्रेष्ठ शाश्वतसिद्ध मंगल स्वरुप अष्टमंगल के माहात्म्यदर्शक निम्नोक्त पाठ का सकल श्री संघको श्रवण करवाया जा सकता है एवं उसके पूर्व इस प्रकार से भूमिका करनी । * जैनागम ग्रंथो के आधार पर स्वस्तिक आदि
अष्टमंगल शाश्वत है । जैनागमो में अनेकत्र उसके उल्लेख प्राप्त होते है । देवलोक में सभाओं के द्वार पर, विमानों के तोरणो पर एवं शाश्वत जिनालयों के द्वार पर भी अष्टमंगल होते है । चक्रवर्ती चक्ररत्न की पूजा अंतर्गत उसके आगे अष्टमंगल आलेखन करते है । श्री मेधकुमार एवं जमाली की दीक्षा के वरघोडे में भी आगे अष्टमंगल होते है। अन्यत्र भी कई
स्थान पर अष्टमंगल होने के उल्लेख प्राप्त होते है। * जैनागमो में ये अष्टमंगलो की१७-१७ विशिष्टताएँ
बताई गई है। * प्रभु महावीर, श्री रायपसेणइय सूत्र में श्री गौतम
स्वामी समक्ष आमलकल्पा नामक नगरी का वर्णन कर रहे है । इस नगरी के इशान कौने में विविध प्रकार के वृक्षो से घिरा हुआ एक विशिष्ट स्वरुपवाला अशोकवृक्ष है । जिसके उपर अनेक संख्या में परम श्रेष्ठ द्रव्यमंगल स्वरुप अष्टमंगल होने को कहा है । अत्यंत विशिष्ट शोभा संपन्न ये अष्टमंगल का पाठ श्रीसंघ के मंगल हेतु यहाँ श्रवण
करवाया जाता है। * सकल श्रीसंघ सावधान ! * ३ नवकार टीप्पणी : आठों मंगल के क्रमसर दर्शन कराने के बाद, आठों
मंगल के दर्शन करवाने के लाभार्थी एकसाथ आठ मंगल लेके खडे रहे और उस वक्त सकल श्रीसंघ समक्ष अष्टमंगल माहात्म्य घोषणा कर सकते है।
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अष्टमंगल माहात्म्य घोषणा ।
तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरिं बहवे अट्ठमंगलगा पन्नत्ता, तंजहा-सोत्थियसिरिवच्छ-नंदियावत्त-वद्धमाणग-भद्दासण
कलस-मच्छ-दप्पणा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरुवा ।
: अनुवाद: ये विशिष्ट स्वरुपवान अशोकवृक्ष के उपर अनेक संख्या में अष्टमंगल है, जो इस प्रकार से : (१) स्वस्तिक, (२) श्रीवत्स, (३) नंद्यावर्त, (४) वर्धमानक, (५) भद्रासन, (६) पूर्णकलश, (७) मीनयुगल और (८) दर्पण ये प्रत्येक अष्टमंगल सर्वरत्नमय है । आकाश एवं स्फटिक जैसे अत्यंत स्वच्छ एवं पारदर्शक है । अत्यंत सुकोमल स्पर्शवाले पुद्गलों से बने हुए एवं अच्छी तरह से पॉलीस कीये हुए ऐसे कोमल मृदु स्पर्शयुक्त है। उसमें स्वाभाविक तो कोई रज-धूल नही है, उपर से भी जरा सी भी धूल नही जमी है । उसमें कोई छोटा-मोटा दाग भी नहीं है । अद्भूत कांतियुक्त एवं चारोंकोर तेजकिरणे फैलातें ऐसे ये अष्टमंगल अपने आसपास की वस्तुओं को भी प्रकाशित करते है । ये अष्टमंगल चित्त को संतुष्टि प्रदान करनेवाले, मन को प्रसन्न करनेवाले, बार-बार दर्शन करने योग्य, हरेक को पसंद आ जाये ऐसे विशिष्ट आकारवाले है।
ये अष्टमंगल के दर्शन से.... श्रमणसंघका मंगल होजो...चतुर्विधसंघ का मंगल होजो... जैनसंघ का मंगल होजो...विश्वमात्र का मंगल होजो...
जय जय होजो... मंगल होजो...
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अष्टमंगल वधामणा
१. स्वस्तिक
नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । दोहा :
अष्टमंगल के दर्श से, श्रीसंघका उत्थान | विघ्न विलय सुख संपदा, मिले मुक्ति वरदान ।। धर्म चार स्वस्तिक वदे, दान - शील-तप-भाव | चार गति के नाश से, प्रगटे आत्म स्वभाव ।।
मंत्र :
ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्हं नमः । सकलश्रीजैनसंघस्य सर्वतः सर्वदा सर्वप्रकारेण सुख-शांति - ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धि - श्रेयोऽर्थं स्वस्तिकमंगलदर्शनमिति स्वाहा ।
* (राग - मालकोश)
आनंद आनंद मंगल हो - 2 निज का मंगल, पर का मंगल, संघ में मंगल, विश्व में मंगल;
आनंद आनंद मंगल हो ... स्वस्तिक को भावों से बधायें, तन मन मंगल, जीवन मंगल; आनंद आनंद मंगल हो...
* स्वस्तिक (तर्ज : शाम ढले यमुना किनारे / वीर झुले त्रिशला झुलावे...) मंगलमय स्वस्तिक बधायें, गायें गुण-गान आनंद मनायें, उत्सव का रंग है, दिल में उमँग है, भावों के परिमल से महकी हवायें... मंगलमय. स्वस्तिक है सुखकार, पंखुडी शोभे चार, चार गति को निवार, दे मुक्ति उपहार, जग में जयकार हो, यश का विस्तार हो, मंगल आनंद की सरगम बजायें... मंगलमय. सम्यग् दर्शन ज्ञान, तप चारित्र महान, आतम गुण का निधान, व्रत वरिति का विमान, पथ में प्रकाश करें, मोह का विनाश करें, भव के भ्रमण को दूर मिटायें... मंगलमय.
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२. श्रीवत्स
नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ।
दोहा :
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श्रीदाता श्रीवत्स की महिमा अपरंपार । ऋद्धि वृद्धि सुमति दीये, अक्षय गुण भंडार ॥
मंत्र :
ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्हं नमः । सकलश्रीजैनसंघस्य सर्वतः सर्वदा सर्वप्रकारेण सुख-शांति ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धि - श्रेयोऽर्थं श्रीवत्समंगलदर्शनमिति स्वाहा ।
* (राग - मालकोश)
आनंद आनंद मंगल हो - 2 निज का मंगल, पर का मंगल, संघ में मंगल, विश्व में मंगल;
आनंद आनंद मंगल हो ...
श्रीवत्स को भावों से बधायें, तन मन मंगल, जीवन मंगल; आनंद आनंद मंगल हो...
:
* श्रीवत्स ( तर्ज चौक पूराओ, माटी रंगाओ...) तोरण बंधाओ, दीप सजाओ,
अष्टमंगल मोरे अंगना पधारे....
जयजयकार गुंजाओ रे, मोतीयन थाल सजाओ रे, अष्टमंगल को बधाने की बेला.... आंगन आज है खुशियों का मेला.. तोरण.....
श्रीकर श्रीवत्स प्यारा, गुणीजन हृदय का सिंगारा, दर्शन करके मन हर्षाये.....
भाव अनोखे हृदय में जगायें... तोरण.....
जो इसे भाव से बधायें, सुख संपत्ति घर आये. दूर हो पापों की श्याम घटायें.... प्रसरे पुण्य की पुनित प्रभायें.. तोरण....
100000/
ATME
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३. नंद्यावर्त नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । दोहा : चरमावर्त चरम शरीर, चरम जन्म उपहार | नंद्यावर्त प्रभाव से, सीमीत हो संसार ।। मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमः। सकलश्रीजैनसंघस्य सर्वतः सर्वदा सर्वप्रकारेण सुख-शांति-ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धिश्रेयोऽर्थं नंद्यावर्तमंगलदर्शनमिति स्वाहा । * (राग-मालकोश)
आनंद आनंद मंगल हो-2 निज का मंगल, पर का मंगल, संघ में मंगल, विश्व में मंगल;
आनंद आनंद मंगल हो... नंद्यावर्त को भावों से बधायें, तन मन मंगल, जीवन मंगल;
आनंद आनंद मंगल हो... * श्रीवत्स (तर्ज : आनंद रंग भगवंत संग...) तन मन उमंग, झूमे अंग अंग
मन का मयूर हर्षाया, बाजे मृदंग, भक्ति तरंग
आनंद ही आनंद छाया... महामंगलकारी जयजयकारी अवसर अनुपम आया, जैन जयति शासनम् बोलो रे जैनं जयति... नंद्यावर्त करे मंगलं, दूर करे सब अपमंगल, जिनशासन को हो वंदन, भवसागर में आलंबन, इस मंगल के पावन दर्शन, चमकायें भाग्य सितारा, दुःख संकट सारे टल जायें, जीवन में हो उजियारा, महामंगलकारी जयजयकारी अवसर अनुपम आया जैन जयति शासनम् बोलो रे जैनं जयति...
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४. वर्धमानक नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । दोहा : विद्या विनय विवेक का, वैभव हो वर्धमान ।। वर्धमानक से पुण्य बल, कीर्ति यश सन्मान ।। मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमः। सकलश्रीजैनसंघस्य सर्वतः सर्वदा सर्वप्रकारेण सुख-शांति-ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धिश्रेयोऽर्थं वर्धमानकमंगलदर्शनमिति स्वाहा । * (राग-मालकोश)
आनंद आनंद मंगल हो-2 निज का मंगल, पर का मंगल, संघ में मंगल, विश्व में मंगल;
आनंद आनंद मंगल हो... वर्धमानक भावों से बधायें, तन मन मंगल, जीवन मंगल;
आनंद आनंद मंगल हो... * वर्धमानक (तर्ज : हर जनम में प्रभु तेरा साथ चाहिये...)
वर्धमान पुण्य का प्रकाश चाहिए, वर्धमान भाव का विकास चाहिए, वर्धमान साधना की प्यास चाहिए...वर्धमान पुण्यका... मंगलकर वर्धमानक है, दर्शन विघ्नविदारक है, वर्धमान ज्ञान का विकास चाहिए...वर्धमान पुण्यका... शाश्वत बिंब के आगे जो, शोभावर्धक लागे जो, मोक्षधाम में सदा निवास चाहिए... वर्धमान पुण्यका...
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५. भद्रासन
नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । दोहा : भद्रासन मंगल करे, दर्श से दुरित विनाश । भद्रंकर कल्याणकर, आतम ज्ञान प्रकाश || मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमः। सकलश्रीजैनसंघस्य सर्वतः सर्वदा सर्वप्रकारेण सुख-शांति-ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धिश्रेयोऽर्थं भद्रासनमंगलदर्शनमिति स्वाहा । * (राग-मालकोश)
आनंद आनंद मंगल हो-2 निज का मंगल, पर का मंगल, संघ में मंगल, विश्व में मंगल;
आनंद आनंद मंगल हो... भद्रासन भावों से बधायें, तन मन मंगल, जीवन मंगल;
आनंद आनंद मंगल हो.... * भद्रासन (तर्ज : माई रे माई...)
झिलमिल झिलमिल भद्रासन को, आओ मिल के बधायें, मंजुल मंगल मनभावन गीतों की धूम मचायें, आनंद मंगल जय जय हो, आनंद मंगल जय जय हो... भद्रंकर भावों से अपना, जीवन भव्य बनायें, भक्ति शुद्धि श्रद्धा से हम तन मन धन्य बनायें, मंगल हो सारी दुनिया का, भावना मन में भाये,
मंजुल मंगल... अष्टमंगल में प्यारा प्यारा, सुन्दर है भद्रासन, करुं प्रतीक्षा प्रभुवर मेरा, सूना हृदय सिंहासन, तारणहारे जिनशासन को दिल में आज बसायें
मंजुल मंगल...
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६. पूर्णकलश
नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ।
दोहा :
पूर्णकलश से पूर्णता, दूर हो जाय विभाव । हृदय कलश शुभ भाव जल, पूरण आत्म स्वभाव ।। मंत्र :
ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्हं नमः । सकलश्रीजैनसंघस्य सर्वतः सर्वदा सर्वप्रकारेण सुख-शांति - ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धि - श्रेयोऽर्थं पूर्णकळशमंगलदर्शनमिति स्वाहा ।
* (राग - मालकोश)
आनंद आनंद मंगल हो - 2 निज का मंगल, पर का मंगल, संघ में मंगल, विश्व में मंगल; आनंद आनंद मंगल हो ...
पूर्णकलश भावों से बधायें, तन मन मंगल, जीवन मंगल; आनंद आनंद मंगल हो ...
* पूर्णकलश (तर्ज ज्योति कलश छलके....)
:
पूर्णकलश चमके.... 2
शीतल निर्मल सुखकारी जल, सौरभ से महके
पूर्णकलश....
पूर्णकलश है पुण्य खजाना, जिन - जननी को स्वप्न सुहाना,
मल्लिनाथ प्रभुका लंछन, करुणा जल छलके...
E
पूर्णकलश...
पूर्णकलश को आज बधायें,
मंगलमय जीवन को बनायें,
पूर्णस्वरूप आतम का पायें, अभिवादन करते..
पूर्णकलश....
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७. मीनयुगल नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । दोहा : प्रीत प्रभु से मैं करूं, नीर संग ज्यु मीन । पर से नाता तोड के, चित्त प्रभु में लीन ।। मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह नमः। सकलश्रीजैनसंघस्य सर्वतः सर्वदा सर्वप्रकारेण सुख-शांति-ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धिश्रेयोऽर्थं मीनयुगलमंगलदर्शनमिति स्वाहा । * (राग-मालकोश)
आनंद आनंद मंगल हो-2 निज का मंगल, पर का मंगल, संघ में मंगल, विश्व में मंगल;
आनंद आनंद मंगल हो... मीनयुगल भावों से बधायें, तन मन मंगल, जीवन मंगल;
__ आनंद आनंद मंगल हो... * मीनयुगल (तर्ज : रुपीयो तो लेने पालीताणा)
भाव से मीनयुगल को बधाके, पावन पुण्य निधान भर लो, प्यारे प्रभुवर का ध्यान धर लो...2 मीन रहे ज्युं जल के भीतर, प्रीत हो मेरी प्रभु के ऊपर, झोली में अपनी ज्ञान भर लो...2
प्यारे प्रभुवर का.... यश सौभाग्य का नूर बढ़ाये, विघ्नसमूह को दूर भगाये, घडी-दो घडी गुणगान कर लो...2
प्यारे प्रभुवर का...
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________________ 8. दर्पण नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः / दोहा : दर्प न हो उत्कर्ष का, अर्पण का परिणाम | दर्पण में दर्शन करूँ, निर्मल आतमराम / / मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमः। सकलश्रीजैनसंघस्य सर्वतः सर्वदा सर्वप्रकारेण सुख-शांति-ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धिश्रेयोऽर्थं दर्पणमंगलदर्शनमिति स्वाहा / * (राग-मालकोश) आनंद आनंद मंगल हो-2 निज का मंगल, पर का मंगल, संघ में मंगल, विश्व में मंगल; ____ आनंद आनंद मंगल हो... दर्पण को भावों से बधायें, तन मन मंगल, जीवन मंगल: आनंद आनंद मंगल हो... * दर्पण (तर्ज : अजब धून अहँ की लागी रे...) दर्पण... दर्पण... दर्पण... दर्पण... अर्पण... अर्पण... अर्पण... अर्पण... बधाओ आज दर्पण मंगलकारी. 2 निज आतम रुप निखारी... बधाओ आज... करे हम जीवन शासन को अर्पण, बनायें निर्मल मन का दर्पण, मेरे नयनां बने अविकारी... बधाओ आज... जगत के जीव सुखी हों हरदम, दिलों में मैत्री कारुण्य का संगम, खिलेगी सद्भावना की क्यारी.. बधाओ आज...