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अष्टमंगल दोहे
अष्टमंगल का आलेखन एवं श्री संघ को दर्शन कराते वक्त निम्नोक्त दोहे बोल सकते है । * अष्टमंगल
अष्टमंगल के दर्श से, श्रीसंघका उत्थान | विघ्न विलय सुख संपदा, मिले मुक्ति वरदान || 1. स्वस्तिक :
धर्म चार स्वस्तिक वदे, दान - शील- तप-भाव | चार गति के नाश से, प्रगटे आत्म स्वभाव || 2. श्रीवत्स :
श्रीदाता श्रीवत्स की, महिमा अपरंपार । ऋद्धि वृद्धि सुमति दीये, अक्षय गुण भंडार ॥ 3. नंद्यावर्त :
चरमावर्त चरम शरीर, चरम जन्म उपहार । नंद्यावर्त प्रभाव से, सीमीत हो संसार ।। 4. वर्धमानक :
विद्या विनय विवेक का, वैभव हो वर्धमान । वर्धमानक से पुण्य बल, कीर्ति यश सन्मान || 5. भद्रासन :
भद्रासन मंगल करे, दर्श से दुरित विनाश | भद्रंकर कल्याणकर, आतम ज्ञान प्रकाश ।। 6. पूर्णकलश :
पूर्णकलश से पूर्णता, दूर हो जाय विभाव । हृदय कलश शुभ भाव जल, पूरण आत्म स्वभाव || 7. मीनयुगल :
प्रीत प्रभु से मैं करूं, नीर संग ज्युँ मीन । पर से नाता तोड के, चित्त प्रभु
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8. दर्पण :
दर्पन हो उत्कर्ष का, अर्पण का परिणाम । दर्पण में दर्शन करूँ, निर्मल आतमराम || * प्रेम-भुवनभानुकृपा, सूरि जय हेमाशिष । अभय अनंत पद में नमें, नित संस्कार का शीष ।।
दोहे एवं गीत रचना : सा. श्री संस्कारनिधिश्रीजी म.सा.
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