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५. भद्रासन
नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । दोहा : भद्रासन मंगल करे, दर्श से दुरित विनाश । भद्रंकर कल्याणकर, आतम ज्ञान प्रकाश || मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमः। सकलश्रीजैनसंघस्य सर्वतः सर्वदा सर्वप्रकारेण सुख-शांति-ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धिश्रेयोऽर्थं भद्रासनमंगलदर्शनमिति स्वाहा । * (राग-मालकोश)
आनंद आनंद मंगल हो-2 निज का मंगल, पर का मंगल, संघ में मंगल, विश्व में मंगल;
आनंद आनंद मंगल हो... भद्रासन भावों से बधायें, तन मन मंगल, जीवन मंगल;
आनंद आनंद मंगल हो.... * भद्रासन (तर्ज : माई रे माई...)
झिलमिल झिलमिल भद्रासन को, आओ मिल के बधायें, मंजुल मंगल मनभावन गीतों की धूम मचायें, आनंद मंगल जय जय हो, आनंद मंगल जय जय हो... भद्रंकर भावों से अपना, जीवन भव्य बनायें, भक्ति शुद्धि श्रद्धा से हम तन मन धन्य बनायें, मंगल हो सारी दुनिया का, भावना मन में भाये,
मंजुल मंगल... अष्टमंगल में प्यारा प्यारा, सुन्दर है भद्रासन, करुं प्रतीक्षा प्रभुवर मेरा, सूना हृदय सिंहासन, तारणहारे जिनशासन को दिल में आज बसायें
मंजुल मंगल...