________________ 8. दर्पण नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः / दोहा : दर्प न हो उत्कर्ष का, अर्पण का परिणाम | दर्पण में दर्शन करूँ, निर्मल आतमराम / / मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमः। सकलश्रीजैनसंघस्य सर्वतः सर्वदा सर्वप्रकारेण सुख-शांति-ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धिश्रेयोऽर्थं दर्पणमंगलदर्शनमिति स्वाहा / * (राग-मालकोश) आनंद आनंद मंगल हो-2 निज का मंगल, पर का मंगल, संघ में मंगल, विश्व में मंगल; ____ आनंद आनंद मंगल हो... दर्पण को भावों से बधायें, तन मन मंगल, जीवन मंगल: आनंद आनंद मंगल हो... * दर्पण (तर्ज : अजब धून अहँ की लागी रे...) दर्पण... दर्पण... दर्पण... दर्पण... अर्पण... अर्पण... अर्पण... अर्पण... बधाओ आज दर्पण मंगलकारी. 2 निज आतम रुप निखारी... बधाओ आज... करे हम जीवन शासन को अर्पण, बनायें निर्मल मन का दर्पण, मेरे नयनां बने अविकारी... बधाओ आज... जगत के जीव सुखी हों हरदम, दिलों में मैत्री कारुण्य का संगम, खिलेगी सद्भावना की क्यारी.. बधाओ आज...