Book Title: Ashtmangal Geet Gunjan
Author(s): Saumyaratnavijay
Publisher: Shilpvidhi Prakashan

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Page 9
________________ ४. वर्धमानक नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । दोहा : विद्या विनय विवेक का, वैभव हो वर्धमान ।। वर्धमानक से पुण्य बल, कीर्ति यश सन्मान ।। मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमः। सकलश्रीजैनसंघस्य सर्वतः सर्वदा सर्वप्रकारेण सुख-शांति-ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धिश्रेयोऽर्थं वर्धमानकमंगलदर्शनमिति स्वाहा । * (राग-मालकोश) आनंद आनंद मंगल हो-2 निज का मंगल, पर का मंगल, संघ में मंगल, विश्व में मंगल; आनंद आनंद मंगल हो... वर्धमानक भावों से बधायें, तन मन मंगल, जीवन मंगल; आनंद आनंद मंगल हो... * वर्धमानक (तर्ज : हर जनम में प्रभु तेरा साथ चाहिये...) वर्धमान पुण्य का प्रकाश चाहिए, वर्धमान भाव का विकास चाहिए, वर्धमान साधना की प्यास चाहिए...वर्धमान पुण्यका... मंगलकर वर्धमानक है, दर्शन विघ्नविदारक है, वर्धमान ज्ञान का विकास चाहिए...वर्धमान पुण्यका... शाश्वत बिंब के आगे जो, शोभावर्धक लागे जो, मोक्षधाम में सदा निवास चाहिए... वर्धमान पुण्यका...

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