Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 4
________________ श् प्रस्तावना. माना मोक्षपर्यन्तना पारलौकिक हितने माटेज नित्यकर्म, देवपूजा, गुरुशुश्रूष दान, शीळ, तप, जाव, संयम ( देशविरति ने सर्वविरति ) विगेरे सत्क्रियामांज ते सर्व लोकोत्तर धर्म कहेवाय छे. या बन्ने प्रकारना धर्ममां जेम वाह्य सामः एटले पुरुषसंपद्, धन, नीरोगता, आत्मवीर्य, सद्बुद्धि ने चित्तोत्साह विगेरेनी श्राव श्यकता बे तेज रीते सन्मुहूर्त्तरूप याज्यंतर- दैवी सामग्रीनी पण अत्यंत आवश्यकत d. लौकिक अथवा लोकोत्तर कोइ पण शुभ कार्य करती वखते कुतूहळी क्षुद्र देवोनं अनेक प्रकारे उपद्रव संजवे बे. कह्युं बे के "श्रेयांसि बहुविघ्नानि, जवन्ति महतामपि । श्रेयसि प्रवृत्तानां क्वापि यान्ति विनायकाः ॥ १ ॥ " " महापुरुषाने पण कट्ट्याणकारी कार्यो घणां वित्रवाळां थाय बे, अने अशुभ कार्यमा प्रवर्तेला पुरुषोनां विनो कोइ पण ठेकाणे चाल्यां जाय बे." योग्य काळे करेला विवाहादिक तथा दीक्षा-प्रतिष्ठादिक कार्यो उत्तर काळे उलटा अशुभ फळने यापनारां दृष्टिपथमां आवे छे. अयोग्य काळे करेला प्रयाण, वेपार विगे नां विपरीत परिणामो नीपजे बे. ए विगेरेने दूर करवा माटे दैवी सामग्री सिवाय बीजी कोइ पण सामग्री समर्थ नथी एटलुंज नहीं, परंतु परवशताने सीधे थयेलां जन्म व्याधि ने मरणादिक पण अयोग्य काळे थयां होय तो ते पण शांति-पुष्टि श्र दैवी सामग्रीथी निर्दोष थाय बे. आवा अनेक हेतुने लइने दरेक शुभ कार्यमा शु मुहूर्त्तनी जरुर बे ने तेने प्रतिपादन करनार ज्योतिष शास्त्र . बे. अन्य शास्त्रोनी जेम या ज्योतिष शास्त्रनो विषय पण अत्यंत सूक्ष्म ने उत्सर्गअपवादादिक व अति गहन तथा सुविस्तृत बे. जेम अध्यात्मादिकनुं रहस्य समजं प्रति कठिन बे तेम या ज्योतिपनुं तत्त्व पण अति गहन बे. अन्य शास्त्रोनी जेम का ज्योतिषनुं तत्त्व पण अति गहन बे. अन्य शास्त्रोनी जेम था ज्योतिष शास्त्र पण अनेक दर्शनide जिन जिन्न प्रकारे स्वस्वशास्त्रीय जापामां रचेतुं वे. जो के दर्शननी जिन्नताने लइने प्राये श्र शास्त्रना विषयमा निन्नता नथी, तोपण गणित सिवायना सर्व विष योमा एक दर्शनना ग्रंथकार आचार्योंना पण मतांतरो बे. ते सर्व विषयोनुं सूक्ष्म ज्ञान जो होय तो ते अमुक अपेक्षाए केवळी जेटलुं ज्ञान धरावे बे तेम सामान्य मनुष्यने प्रतीत थाय छे, कारण के अष्टांग निमित्तने जाणनार गोशाळक श्रीमहावीर स्वामीनी समान बनी पोताना सेवकोमां तीर्थंकर जेटलो पूज्य थयो हतो. वराहमिहिर के जेणे १ आ शास्त्र केवळ काळने प्रतिपादन करनार होवाथी सर्व कार्यमां काळनेज हेतुरूप गणे छे, तेथी करीने द्रव्य, क्षेत्रादिकनो निषेध थइ शकतो नथी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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