Book Title: Arambhsiddhi Lagnashuddhi Dinshuddhi
Author(s): Udayprabhdevsuri, Haribhadrasuri, Ratshekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 3
________________ प्रस्तावना. था चपार संसारसागरमा मन थयेला प्रालीगणो चोराशी दक्ष योनिरूप तरंगोमां मश कर्या करे . तेमां दैवयोगे मानुष्यादिक सामग्रीरूप फनकादिकानुं अवलंदन ळ्या उतां पण केटलाएक अलव्यत्वादिक पुर्जाग्यने योगे असत्कर्मरूप विपरीत वायुना कर्षणथी पुनः पुनः थरघट्टघटीना न्याये तेज योनितरंगोमां अनंत काळ सुधी भ्रमण र्या करे , अने केटलाएक जव्यो सद्लाग्यने योगे संयमादिक सत्कर्मरूपी अनुकूळ युनी प्रेरणाथी मुक्तिरूपी तीरे पहोंची निर्जय परमानंदने पामे . आ मुक्तिज सर्व पण दर्शनने इष्टतम , कारण के अन्य गतित्रय (देव, नारक अने तिर्यंच) सिवाय क मनुष्यगतिमांज अने तेमां पण कर्मचूमिना मनुष्योने माटेज धर्म, अर्थ, काम श्रने कि ए चार पुरुषार्थ साधवानी फरज शास्त्रमा कहेली ने अर्थात् ते मनुष्योज चारे रुषार्थो साधी शके . तेमां मोक्ष पुरुषार्थने इष्टतम गणेलो ने एटले के मोद साध्या बीबीजं कांश पण साधवानुं श्रवशेष रहेतं नथी. ते मोक्षने साधवानं एकांत स मजबे, एटखे के धर्मनुं मुख्य फळ मोदज , अने अर्थ तथा काम ए आनुषंगिक ळ . श्रा उपरथी सिद्ध थाय डे के मनुष्य अने तिर्यंचना प्राणित्व जाति अने श्राहादिक धर्मो (संज्ञा) समान उतां पण मात्र एक धर्म पुरुषार्थने याश्रीनेज मनुष्यनव ए गएयो ने. कडुंबे के "श्राहारनिघालयमैथुनं च, समानमेतत्पशुचिर्नराणाम् । धर्मो हि तेषामधिको नराणां, धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः॥१॥" . "थाहार, निजा, जय अने मैथुन था चार पशुठनी साये मनुष्योने समान बे. तेमां नुष्योने एक धर्मज अधिक बे, ते धर्म वमे रहित होय तो ते पशु समानज ." आ धर्म निन्न निन्न दर्शनोमां अन्यान्य प्रकारे वर्णन कर्यो . तेमां सर्वथा प्रकारे भनी शुद्धता जैन दर्शनना जेवी कोइ पण दर्शनमां नयी एम घणी रीते सिद्ध थाय , रंतु ते पत्र प्रस्तुत होवाथी कहेवामां श्रावतुं नथी. अहीं धर्म शब्दनो सामान्य अर्थ फरज-कर्तव्य थ शके बे. ते लौकिक अने लोकोर दे करीने बे प्रकारनो वे. तेमां पित्रादिक पुत्रादिकनुं पोषण करे, जन्मोत्सवादिक स्कार करे, विद्याध्ययन करावे, लग्न करे तथा व्यापारादिकमां योजना करे, ए तेमनी रज-धर्म जे. तेज रीते पुत्रादिक पित्रादिकनी सेवा-लक्ति करे, तथा अंते श्रौर्ध्वदेहिकादेक क्रिया करे,ते तेमनी फरज-धर्म ले. एजरीते पति-पत्यादिक अन्योन्यना हितकार्यमां वर्ते तथा निर्वाहादिकने कारणे कृषि, व्यापार अने राजसेवादिक कार्यमा प्रवर्ते, ए वगेरे धर्म-फरज कहेवाय जे. श्रा सर्वनो लौकिक धर्ममा समावेश आय ने अने केवळ १ उपरनी युक्तिथी अर्थ, काम भने मोक्षनो भर्ममांज समावेश थाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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