Book Title: Aradhana Kathakosha
Author(s): Bhattarak Chandrakirti, Shantikumar Jaykumar Killedar
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 773
________________ ७४८ : माराधना-कथाकोष श्लोक-शकाः स्नान-विधायिनः सुरगिरिः स्नानप्रपीठं पयः सिंधुर्यस्य सुकुंडिका सुरगणाः सत्किकराः सादराः ।। नर्तक्योऽप्सरसः सुकीर्तिमुखरा गंधर्वसन्नाकिनो। आता जन्ममहोत्सवेऽत्र भवतां, स श्रीजिनः शं क्रियात् ।।७७॥ इंद्राचा जो ठिकान मेर । स्नान तया पीठिकानावर । क्षीरसिंधु आनोनी नीर । करिती आदर न्हवन देवा ॥७८।। अप्परा नृत्य करताती। गंधर्व गायन करती। जन्म महोत्सव सत्कीर्ती । जै जै वदति शतइंद्र ॥७९|| श्लोक-श्रीमत्चारुमयूरवाहनपरा पद्मासना निर्मळ । मिथ्याध्वांतभरप्रणाशविलसत् भास्वत्प्रभाभासुरां । भव्याब्जवनप्रमोदजननी सन्मार्गसंदशिनी । देवेंद्रादिसचिता जिनपतेजियात् सतां भारती ॥८९॥ श्री शुभ सुंदर मयूर । वाहन पद्मासन निर्भर । मिथ्यात्व हेळि अंध:कार । नाशनशूर प्रभा दिव्य ।।८१॥ भव्यजना आनंद दाता । धर्ममार्ग दर्शविता । देवेंद्र आदि समचिता । जिनमुखोत्पन्ना भारती ॥८२।। श्लोक-जातः श्रीमति मूलसंघतिलके सारस्वते सत् शुभे । गच्छे स्वच्छतरे प्रसिद्धमहिमाश्रीकुंदकुंदान्वये । श्रीजैनागमसिंधुवर्द्धनविधुविद्वज्जनः सेवितः । श्रीमत्सूरिमतल्लिका गुणनिधि जीयात् प्रभाचंद्रवाक् ॥८३|| मूळसंघ श्रेष्ठ आमचा । गच्छ जाना सरस्वतीचा । गण बळात्कार सत्य साचा । सद्गुरू जैनाचा निग्रंथ ॥८४॥ जैन धर्म दशलक्षणी । त्रिपन क्रिया जानती ज्ञानी । श्री कुंदकुंदाचार्य मुनी । श्रीसूरीमुनी प्रभाचंद्र ||८५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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