Book Title: Aradhana Ganga
Author(s): Ajaysagar
Publisher: Sha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai
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आत्मा मारो प्रभु तुज कने, आववा उल्लसे छे, आपो एबुं बळ हृदयमां, माहरी आश ए छे. दया सिंधु दया सिंधु, दया करजे दया करजे, हवे आ जंजीरोमांथी, मने जल्दी छूटो करजे; नथी आ ताप सहेवातो, भभूकी कर्मनी ज्वाळा, वरसावी प्रेमनी धारा, हृदयनी आग बुझवजे. आबु अष्टापद गिरनार, समेतशिखर शत्रुजय सार, ए पांचे तीरथ उत्तम ठाम, सिद्धि गया तेने करुं प्रणाम. प्रभु माहरा प्रेमथी नमुं, मूर्ति ताहरी जोईने ठरूं, अरर! ओ प्रभु पाप में कर्या, शुं थशे हवे माहरी दशा, माटे प्रभुजी तुमने विनवू, तारजो हवे जिनजीने स्त, दीनानाथजी दुःख कापजो, भविक जीवने सुख आपजो. पार्श्वनाथजी स्वामि माहरा, गुण गाउ हुं नित्य ताहरा. प्रभु जेवो गणो तेवो, तथापि बाळ तारो छु, तने मारा जेवा लाखो, परंतु एक मारे तुं; नथी शक्ति नीरखवानी, नथी शक्ति परखवानी, नथी तुज ध्याननी लगनी, तथापि बाळ तारो छु. सुण्या हशे पूज्या हशे, निरख्या हशे पण को क्षणे: हे जगत-बंधु! चित्तमां, धार्या नहि भक्तिपणे. जन्म्यो प्रभु ते कारणे, दुःखपात्र आ संसारमां; हा! भक्ति ते फलती नथी, जे भाव शून्याचारमां. जे दृष्टि प्रभु दर्शन करे, ते दृष्टिने पण धन्य छे; जे जीभ जिनवरने स्तवे, ते जीभने पण धन्य छे. पीए मुदा वाणी सुधा, ते कर्ण-युगने धन्य छे; तुज नाम मंत्र विशद धरे, ते हृदयने नित धन्य छे. हे देव तारा दिलमां, वात्सल्यनां झरणां भर्या, हे नाथ तारा नयनमां, करुणातणां अमृत भर्या;
धर्म कठिन लगता है? समस्या धर्म नहीं, कुसंस्कार है.
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