Book Title: Aradhana Ganga
Author(s): Ajaysagar
Publisher: Sha Hukmichandji Medhaji Khimvesara Chennai

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Page 118
________________ oe निरंतर क्रीड़ा में रत रहने वाले देव तिर्यग्नुंभक देव कहलाते हैं। ये अतिप्रसन्नचित्त रहते हैं। ये अधिकतर मैथुनसेवन में रत रहते हैं। जिन व्यक्तियों पर ये प्रसन्न होते हैं उन्हें तो ये सभी रीति से सुखी, संपन्न बना देते हैं और जिन व्यक्तियों पर ये रुष्ट, कुपित होते हैं तो उन्हें ये कई प्रकार से हानि पहुँचाते रहते हैं। विशेषतः ये अपने नाम के अनुरूप ही प्रमुखरूप से कार्य करते हैं। ये दस प्रकार के होते हैं। (१) अन्नमुंभक- अपनी शक्ति से भोजन के परिमाण को घटा एवं बढ़ा सकने; सरस या नीरसादि बना सकने वाले देव। (२) पानāभक- अपनी शक्ति से पेय पदार्थों के परिमाण को घटा एवं बढ़ा सकने; सरस या नीरसादि बना सकने वाले देव । (३) वस्त्रजुंभक-अपनी शक्ति से वस्त्रों के परिमाण को घटा एवं बढा सकने वाले देव। (४) लयनजुंभक- गृहादि की रक्षा करने वाले देव । (५) शयनजुंभक- शय्यादि की रक्षा करने वाले देव । (६) पुष्पज़ुभक– पुष्पों की रक्षा करने वाले देव । (७) फलज़ुभक- फलों की रक्षा करने वाले देव। (८) पुष्प-फलज़ुभक-पुष्पों एवं फलों की रक्षा करने वाले देव। किसी-किसी आगम में पुष्प-फलजुंभक नाम के बदले मंत्रमुंभक (मंत्रों की रक्षा करने वाले देव) नाम प्राप्त होता है। (९) अव्यक्तनँभक- सामान्यतः सब पदार्थों की रक्षा करने वाले देव। किसीकिसी आगम में अव्यक्तभक नाम के बदले अधिपतिजूंभक नाम प्राप्त होता है। ज्योतिषी देवों का संक्षिप्त स्वरूप___ चंद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे, इन पांच प्रकार के देवों को ज्योतिषी देव कहा जाता है। इनका निवास मध्यलोक में हैं। मध्यलोक में मेरूपर्वत के समभूभाग से ७९० योजन से लेकर ९०० योजन तक यानि कुल ११० योजन प्रमाण ऊर्ध्व क्षेत्र में लाखों स्फटिकरत्नमय, आधे कबीट्ठ फल के आकार वाले विमानवास * प्रभु की हर बात जो प्रेम से स्वीकारता है वह स्वयं प्रभुमय बन जाता है.

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