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श्री नमिनाथ भगवान
चैत्यवंदन आतममां प्रणमी प्रभु, थया नमि जिनराज; नमवू उपशम क्षायिके, क्षयोपशमे सुखकाज. नम्या न जे ते भव भम्या, नमी लह्या गुणवृंद; नमि प्रभुजीए भाखियुं, सेवा छे सुख कंद. | आतममां प्रणमी रही ए, स्वयं नमी घट जोवे; ध्यानसमाधि योगथी, आत्मशक्ति नहीं खोवे. ।
स्तवन 'श्री नमिनाथने चरणे नमतां, मनगमतां सुख लहीए रे; भव-जंगलमा भमतां रहीए, कर्म निकाचित दहीए रे. श्री. १ समकित शिवपुरमांहि पहोंचाडे, समकित धरम आधार रे; श्री जिनवरनी पूजा करीए, ए समकितनो सार रे. श्री. २ जे समकितथी होय उपरांठा, तेना सुख जाये नाठा रे; । जे कहे जिनपूजा नवि कीजे, तेहगें नाम न लीजे रे. श्री. ३ वप्राराणीनो सुत पूजो, जिम संसारे न धूजो रे; भवजलतारक कष्ट निवारक, नहि कोई एहवो दूजो रे. श्री. ४ कीर्तिविजय उवज्झायनो सेवक, विनय कहे प्रभु सेवो रे; । त्रण तत्त्व मनमांहि धारी, वंदो अरिहंतदेवो रे. श्री.
स्तुति नमि जिनेश्वर सेवा भक्ति, जगनी सेवा भक्तिजी, निज आतमनी सेवा भक्ति, एक स्वरूपे शक्तिजी; नाम रूपथी भिन्न निजातम, धारी प्रभु जे ध्यावेजी, प्रारब्धे कर्मनो भोगी, तो पण भोगी न थावेजी.१।
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