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जन्म-मरण रूप अनंत दुःखों से भरे भव सागर में अनेक तरह से पीड़ित हो रहे प्राणियों को सुरक्षित पार उतारने के लिए पोत-नौका हैं; सभी आश्रितों का हमेशा हित ही करने वाले होने से एकांत शरण लेने योग्य है. ऐसे अरहंत भगवंत मुझ असहाय के लिए यावत्-जीवन- जब तक जीवन है तब तक, शरण हैं... आश्रय हैं...
सिद्ध का शरण तहा पहीण-जरामरणा अवेय-कम्मकलंका पणठ्ठ-वाबाहा केवल-नाणदंसणा सिद्धिपुरवासी णिरुवम-सुह-संगया सव्वहा कयकिच्चा सिद्धा सरणं. ७
तथा, जिनके जरा- बुढ़ापा व मरण आदि प्रक्षीण हो चुके हैं, पूरी तरह नाश हो चुके हैं; कर्मरूपी कलंक- कालिमा पूरी तरह साफ हो चुके होने से जिनकी सारी शक्तियाँ खिल उठी हैं; जिनके पूर्ण सुख के बीच की सारी बाधाएँ प्रनष्ट हो चुकी हैं; जो केवलज्ञान और केवलदर्शन रूप हैं; लोक के सर्वोच्च भाग पर आए हुए सिद्धिपुर यानि मुक्ति के स्थाई रूप से निवासी हैं; पराई वस्तुओं के संयोग से ही उत्पन्न होने वाले संयोगिक सुखों के साथ जिसकी कोई उपमा नहीं हो सकती ऐसे असंयोगिक अनुपम सुख से जो संगत हैं, युक्त हैं। संसारी जीव के कार्य तो अनंत जन्मों में भी कभी पूरे नहीं हुए हैं, फिर भी करने योग्य सब कुछ जो सर्वथा कर चुके है, कृतकृत्य हैं; ऐसे आत्मा की सर्वोच्च अवस्था को हमेशा के लिए पाए सिद्ध भगवंत
यावत्-जीवन मेरे लिए शरण हैं, आश्रय हैं: *
दृष्टि-दोष मे दोष-दृष्टि कहीं ज्यादा खतरनाक है. *