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मेरा इस प्रार्थना के प्रति अंतःकरण से बहुमान हो. और इसी प्रार्थना के बल से मुझे परंपरा में अवश्य फलने वाले ऐसे कुशलानुबंधी कर्मरूप उत्तम मोक्षबीज की प्राप्ति हो. पत्तेसु एएसु अहं सेवारिहे सिया, आणारिहे सिया, पडिवत्ति-जुत्ते सिया, निरइआर-पारगे सिया. १०
एवं इन अरंहत, गुरू आदि की प्राप्ति होने पर... मैं उनकी सेवा के योग्य होऊँ; मैं उनकी आज्ञा के योग्य होऊँ; मैं उनकी उन सभी आज्ञाओं की प्रतिपत्ति से, स्वीकृति से युक्त बनआज्ञाओं को जीवन में स्वीकारने वाला बनूं... स्वीकारी हुई उन आज्ञाओं
को अतिचार रहित पूरी तरह पालने वाला बनूं... सर्व गुणों व योग्यताओं के लिए बीजसमानः सुकृत अनुमोदना संविग्गो जहासत्तीए सेवेमि सुकडं. (ति)अणुमोएमि सव्वेसिं अरहताणं अणुट्ठाणं, सव्वेसिं सिद्धाणं सिद्धभावं, सव्वेसिं आयरियाणं आयारं, सव्वेसिं उवज्झायाणं सुत्तप्पयाणं, सव्वेसिं साहूणं साहुकिरियं,
संविग्न-मोक्षाभिलाषी बना मैं शक्ति अनुसार सुकृतों की सेवना करता हूँ. मैं मेरे हृदय की चाहना व प्रसन्नता से भरी अनुमोदना करता हूँ... सभी अरहंतो के धर्मदेशना आदि सर्व हितकारी अनुष्ठानों की; सभी सिद्धों के अव्याबाध आदि रूप सिद्धभाव की; सभी आचार्यों के ज्ञानाचार आदि रूप निर्मल-सुंदर आचार धर्म की; सभी उपाध्यायों के विधिपूर्वक आगम आदि सूत्रों के दान की; सभी साधुओं की स्वाध्याय, ध्यान आदि रूप साधु-क्रिया की;
परमात्मा की भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ ति है.