Book Title: Anuyogdwar Churni Author(s): Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha, Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha View full book textPage 7
________________ अनुयोग चूर्णी अथवा अणु पग इत्यादि सुप्रवर्तनेत ॥५॥ careCTRESEARCRA देंति, ताहे सो उद्वेति णिसेज्जाए, पुणो गुरू तत्थाणसीयइ, ते य अणुयोगविसज्जणं उस्सग करेंति कालस्स य पडिकमति, आवश्यका Oधिकार: | अणुण्णायअणुयोगसाधू य निरुद्धं पवेदेति, एते उद्देसाइया सुत्तणाणस्सेवेत्यवधारिता, न मत्यादीनां, जतो भणित-सुतपा-1 णस्स उद्देसो' इत्यादि, तेसुवि ण उद्देसादिसु अहिकारो, पुवमहीतत्तणतो अणुयोगद्दाराहिकारातो य, अनुयोगेनात्राहिकारः, तस्स णिरुत्तं इम--अणुयोगणमणुयोगो, निजेन अभिधेयेनेत्यर्थः, अहवा जोगोत्ति वादारा जो सुतस्स सो यऽणुरूवो अणुकूलो वा, अनुयोग इत्यर्थः, अथवा अणु पच्छा थोवभावेति, अत्थतो जम्हा सुत्तं थोवं पच्छुप्पण्णं च, तेण सह अत्थस्स जोगो अनुयोग इत्यर्थः, 'मतणाणस्स अनुयोग' इत्यादि सुत्तं (३-६) (४-६) (५-७) 'इम' ति वट्टमाणकालासण्णकिरिय पच्चक्खभावे, अंगाणंगादिविसेसणो पुणसद्दो, पट्टवणं प्रारंभ:-प्रवत्तनेत्यर्थः, दिवासि णिसि पढमचरिमासु जे पढिज्जइ तं 8 कालितं, जं पुण कालवेलवज पढिज्जइ त उक्कालियं, अवस्सं जं उभयसंझकालं कज्जइ उभयसंझकाले वा जेण किरिया 8 कज्जइ तं आवस्सयं, सेसं सव्वं वइरित्तं 'आवस्सयगं णं' (६-९) इत्यादि, णमिति वाक्यालंकारे देसीवयणतो वा, अंग अंगाई' ति इच्चादि, अट्ठ पुच्छातो, तासु णिण्णयावध (धार) णे ततियाछट्ठापुच्छातो आदेया, सेसा अणादेया, त्याज्या | इत्यर्थः, एत्थ चोदक आह-आवस्सगस्स अंग अंगाइन्ति पुच्छाण कातब्बा, जतो नंदिवक्खाणे आवस्सगं अणंगपविट्ठ वक्खाणितं, इह अणंगपविढे य उक्कालितादिक्कमेण आवस्सगस्स उद्देसादिया मणिता, एवं भणिते का संका', आचार्य आह-अकते शंदिवक्खाणे संका भवति, किह?, ण णियमो अवस्सं गंदी पढमं वक्खाणेतव्वा, जतो णाणपंचकाभिधाणमेत्तमेव मंगलामिटुं, | इहपि अंगाणंगकालिउकालियादिक्कमो जो दरिसितो सोवि कस्स सुतस्स उद्देसा पवनंत इति जाणणत्थं भणितो, अणुयोगPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 222