Book Title: Anusandhan 2014 03 SrNo 63 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 7
________________ श्रीरामचन्दसूरिविरचिता स्तवचतुर्विंशतिका (अपूर्ण) - सं. मुनि सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजय जैन साहित्यमां सौथी वधु रचना प्रायः २ प्रकारोनी थई छे : १. भक्तिप्रधान रचनाओ २. चरित्रात्मक रचनाओ. तेमां पण. भक्तिप्रधान रचनाओमां पण स्तोत्र, स्तवनादि रूप साहित्य प्रचुर मात्रामा प्राप्त थाय छे. प्रस्तुत कृति ते भक्तिप्रधान साहित्यना स्तोत्रचतुर्विशतिका (चोवीशी) नामना काव्यप्रकारनी अद्भुत रचना छे. कृतिनुं फक्त प्रथम पत्र ज मळतुं होवाथी पांचमा तीर्थंकरना स्तोत्रना अगियारमा श्लोक सुधी ज रचना प्राप्त थाय छे. बाकीनी कृति अनुपलब्ध ज रहे छे. अलबत्त कृतिनुं पदलालित्य जोतां कृति कोई उत्तम विद्वान कविनी रचना होय तेमां कोई ज संदेह नथी लागतो. दरेक स्तोत्रनो छेल्लो श्लोक समान छे. तेमां कृतिकारे पोताना नामनो उल्लेख पण कर्यो छे. छतांय स्तोत्रकारना नामनो निर्णय करवामां मुंझवण थाय तेवू छे. 'कनकाभिराम' पदथी ओक हेमचन्द्र एवं नाम विचाराय, बीजु रामचन्द्र अर्बु पण बने.* पत्रनी लेखनशैली. कागळ वगेरे जोतां प्रत प्रायः १५मी सदीनी होवानुं अनुमान छे, तेथी कर्ता पण ते पूर्वे ज थया होय तेवू नक्की करी शकाय. छतां आ अंगे विद्वानो योग्य मार्गदर्शन आपशे. ___ आ तिने उकेलवामां - शुद्ध करवामां पू. उपा. भुवनचन्द्र म. तथा मु. त्रैलोक्यमण्डन वि. म.सा.नो तेमज प्रस्तुत कृतिनी हस्तप्रत आपवा बदल श्रीनेमि-विज्ञान-कस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर(सुरत)ना व्यवस्थापकश्रीनो खूब खूब आभार. __स्तोत्रसङ्ग्रह - भाग १मां मुद्रित कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यना पट्टशिष्य श्रीरामचन्द्रसूरिनां स्तोत्रोनी साथे प्रस्तुत स्तोत्रोने सरखावतां आ स्तोत्रो ते श्रीरामचन्द्रसूरिजीनां ज होय ओवी कल्पना दृढ बने छे. त्रीजा स्तोत्रना १२मा श्लोकमां 'स्वतन्त्रता'नी मांगणी तेमज चोथा स्तोत्रना ५ अने ७मा श्लोको पण स्वातन्त्र्यप्रेमी उपरोक्त आचार्यनां ज आ स्तोत्रो होय तेवी विचारणाने पुष्टि आपे छे. - शी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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