Book Title: Anusandhan 2014 03 SrNo 63 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 6
________________ अनुक्रमणिका सम्पादन श्रीरामचन्द्रसूरिविरचिता स्तवचतुर्विंशतिका - सुयशचन्द्र सुजसचन्द्रविजय १ महोपाध्यायश्रीरत्नशेखरविरचितं स्तवनचतुष्कम् (सावचूरि) - म. विनयसागर ७ पं. श्रीहेमविजयगणिविरचितं कीर्तिकल्लोलिनीकाव्यम् (स्व.) अम्बालाल प्रेमचन्द शाह २३ 'नालिकेरसमाकाराः' इति वाक्यस्य चत्वारिंशदर्थाः सुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजय ६४ पं. श्रीगम्भीरविजयजीओ आपेलो हर्मन जेकोबीना पत्रनो उत्तर त्रैलोक्यमण्डनविजय ७० श्रीअमरविजयविरचित श्रीश्रेयांसनाथस्तवन सा. ज्योतिर्मित्राश्री ७७ ऋषभदेवस्तवन ___सा. ज्योतिर्मित्राश्री ८६ श्रीनेमविजयकृत स्तम्भन-शेरीसा-शङ्केश्वर पार्श्वस्तवन सा. श्रीकुमुदरेखाश्री ८८ चार प्रकीर्ण काव्यो अनिला दलाल १२० रामकुंवरबाईनी पच्चक्खाणवही धर्मकीर्तिविजय १२६ लेखन .. जैन चित्रशैली का पृथक् अस्तित्व विजयशीलचन्द्रसूरि १४३ उपाङ्गसाहित्य : एक विश्लेषणात्मक विवेचन प्रो. सागरमल जैन १४६ श्रीमण्डपीयसङ्घप्रशस्ति विषे त्रैलोक्यमण्डनविजय १५५ द्रव्यपुद्गलपरावर्त शक्य छे के नथी? त्रैलोक्यमण्डनविजय १८४ प्रकीर्ण डॉ. नगीन जे. शाहनी विदाय १९१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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