Book Title: Anusandhan 2012 07 SrNo 59 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 4
________________ निवेदन संशोधन एक साधना छे. धर्मनी आराधना सहजजन्मजात सांपडी होय; शास्त्रादिना अध्ययनथी समजण पुष्टपुख्त बनी होय; तेमां संशोधन द्वारा शास्त्र अने इतिहासने वधु स्पष्ट अने वधु सत्य/यथार्थ बनाववा माटेनी बहुमानसभर तेमज नम्र तमन्ना होय; त्यारे जे संशोधन अथवा ते माटेनो उद्यम थाय ते आपोआप साधना बनी रहे छे. आजकाल आपणे त्यां, 'साधना' तथा 'तप' जेवा शब्दोने, गमे तेवा-छीछरा पण - सन्दर्भोमां प्रयोजवानी फेशन चाली रही छे. काम समाजनुं करवानुं होय, अने ते करतां करतां पोतानां अनेक अंगत हित/स्वार्थ साधी लेवातां होय तो, तेवा प्रयत्नने 'साधना' केम गणाय ? ए ज रीते, जे ज्ञानोपासनानो प्रयास, पोताना अहंकारने पुष्ट बनाववामां अने अन्यने तुच्छ गणाववामां ज परिणमतो होय, तेवा प्रयासने 'तप'नो दरज्जो पण केम अपाय? केटलाक लोको संशोधन अने स्वाध्यायना क्षेत्रमा थोडंघj काम करतां जोवा मळे छे. काम थोडं होय अने देखाव झाझो होय एवू पण जोवा मळे छे. अथवा काम घणुं होय पण तेमां उपयोगी के शोधात्मक कार्य घणुं अल्प होय एम पण बने. धन अने साधनोनी सुलभता; दिग्विजय के Concordance नी मनोवृत्ति; (पोते ज श्रेष्ठ, पोते जे करे ते योग्य ज अने तेथी सर्वमान्य ज बनवू जोईए, कोईथी पण एमां भूल न कढाय के खामी न देखाडाय, पोताना सिवायना जे करे ते बधुं तुच्छ अने खामीभरेलुं ज होय, आ प्रकारना मानसने दिग्विजयी मनोवृत्ति कहेवामां आवे छे); छलोछल अहंकार तथा तोछडाई, अने नम्रतानो के कोईना सारा कार्य प्रत्ये पण सन्माननो सदंतर अभाव; - आवी आवी विशेषताओ, ए लोकोनां कार्य परत्वेPage Navigation
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