Book Title: Anusandhan 2010 06 SrNo 51 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 5
________________ जून २०१० १ संशोधकनुं कर्तव्य : " आसनसों मत डोल” ताजेतरमां एक साधु महाराजे प्रश्न उपस्थित कर्यो : “शुं संशोधकोनो आ ज धर्म हशे के गुंचवाडा ज ऊभा करवा ?" पूर्वापर सन्दर्भो तपासतां जाणी शकायुं छे के पोतानी अमुक गलत तेमज अज्ञानजनित मान्यता पर प्रहार थतो जोईने तेमने खराब लागी जवाने कारणे तेणे आवो प्रश्न उठाव्यो जणाय छे. मांडीने वात करीए. बन्युं छे एवं के जैन श्रमण परम्परानुं अने केटलीक ऐतिहासिक घटनाओनुं वर्णन करती एक नानकडी कृति छे - हिमवंत थेरावली. थोडा दायका अगाऊ ते प्रकाशमां आवी, अने विद्वानो तेने हिमवंताचार्यनी रचना मानी लीधी. परन्तु आ एक आधुनिक रचना होवानुं, ए ज विद्वानोने, पाछळथी, तेनां बाह्यान्तर परीक्षणो करवाथी प्रतीत थयुं, अने तेओए तेना आधारे इतिहासनां तथ्योने मूलववानी वृत्ति पर पडदा पाड्यो, जे उचित ज गणाय. ‘अनुसन्धान - ४६ 'मां आ विषे विस्तारपूर्वक नोंध लखवामां आवी, जेथी तथ्योनी जाणकारी सर्वने मळी रहे. आशय एटलो ज के आधुनिक रचनाने प्राचीन गणीने चालवाथी उत्पन्न थयेला अने थता गुंचवाडा दूर थाय. परन्तु संशोधन अने संशोधक ए बे शब्दोथी सदैव भडकता रहेला साधुमित्रने ए आशय न समजायो होय, के पछी पोतानी कोई मान्यता तथा आ विषयने केन्द्रमां राखीने लखेल इतिहास-ग्रन्थ खोटां पुरवार थवानी भयग्रन्थिथी प्रेराईने होय; तेमणे एक ठेकाणे निम्न भाषामां लख्यं " गुंचवाडानो एक नमूनो जोवा जेवो छे. श्रीपुण्यविजयजी बृहत्कल्पसूत्र भाग ६ ना आमुखमां पृ. १८ थी १९ उपर जणावे छे के आ उपरांत 'हिमवंत थेरावली'मां नीचे प्रमाणेनो उल्लेख छे. आचाराङ्गसूत्र उपरनी टीकाना प्रारम्भमां ‘शस्त्रपरिज्ञाविवरणमतिबहुगहनं च गन्धहस्तिकृतं' एम जणाव्युं छे ते जोतां हिमवंत थेरावलीनो उल्लेख तरछोडी नाखवा जेवो नथी. आ रीते एक बाजु श्रीपुण्यविजयजी हिमवंत थेरावलीनी आधारभूततानो संकेत आपे छे त्यारे बीजी बाजु शी. एवा टुंकाक्षरी नामवाळा कोई अनुसन्धानकार पोताना कोई लेखमां आक्रोशपूर्वक हिमवंत थेरावली प्रत्येPage Navigation
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