Book Title: Anusandhan 2000 00 SrNo 16
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 6
________________ श्रीधनहर्षशिष्यकृतः विज्ञप्तिकालेखः ॥ -सं. विजयशीलचन्द्रसूरि जैन श्रमण-परंपरामां विज्ञप्तिपत्रो लखवानी एक समृद्ध प्रणालिका मध्ययुगमां हती, जेना लीधे आपणने अनेक काव्यमय श्रेष्ठ रचनाओ तेमज ऐतिहासिक माहिती वर्णवतां दस्तावेजी लेखो तथा चित्रो पण प्राप्त थयां छे. विज्ञप्तिपत्रो मुख्यत्वे त्रणेक प्रयोजनोथी लखातां : १. पर्युषणापर्व वीती जाय, पछी गच्छनायकनी क्षमापना करवाना प्रयोजनथी; २. गच्छपतिने पधारवानी के पोताना क्षेत्र (गाम) माटे चातुर्मास माटे साधु मोकलवानी विनंतीना प्रयोजनथी; ३. शिष्यो द्वारा गुरुभक्तिथी प्रेरित. आ प्रकारना विज्ञप्तिपत्रो-लेखोनी संख्या घणा मोटी छे, परंतु शोधको/ अभ्यासीओनी प्रतीक्षा करती ते सामग्री विविध भंडारोमां सचवाई पडी छे. ___ अहीं तेवो ज एक अप्रगट विज्ञप्ति-लेख प्रस्तुत थाय छे. सामान्यतया आवा लेखो ओळियां (Scroli)ना रूपमां जोवा मळे छे. पण आ लेख प्रतना स्वरूपे मळ्यो छे, अने वळी ते अधूरो पण छे. आ अंगे विभिन्न अटकळो थई शके : लेख-कर्ताए प्रथम आनो खरडो आ रूपे लख्यो होय अने ते अधूरो रही गयो होय. अथवा कोईए मूळ लेखनी नकल उतारी होय अने ते अधूरी ज रही गई होय. लेख-कर्ताए पोतानुं नाम नथी आप्युं, पण पोतानी ओळख 'धनहर्षना शिष्य' (८६) तरीके आपी छे. वळी, तेओ जे गच्छपति प्रत्ये लेख पाठवे छे, तेओनुं स्पष्ट नाम पण क्यांय जणावतां नथी; 'तातपाद' के 'तात' तरीके ज वर्णन आप्युं छे. एक ठेकाणे 'तपागणपते !' (२४) अने एक स्थाने 'चन्द्रगणाधिप' (३३) तरीके गुरुने कर्ता वर्णवे छे, ते परथी गच्छनायक चन्द्रकुलना अने तपागच्छना वडा होवानुं सूचित थाय छे. आम छतां, एक स्थळे तेमणे गुरु माटे 'कमाजन्मनः (१२७) एवं विशेषण प्रयोज्युं छे, ते सूचवी जाय छे के आ लेख 'कमाशा' शेठना पुत्र-विजयसेनसूरिगुरु उपर लखवामां आव्यो छे. पत्रलेखननो समय जो के निर्देशायो नथी, परंतु स्वाभाविक रीते ज अनुमानी शकाय छे के श्रीहीरविजयसूरिना स्वर्गारोहण पछी ज, १६५२ पछी ज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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