Book Title: Anusandhan 2000 00 SrNo 16
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान - १६ • 10
अहं [तु] जाने हिमवालुकाभिर्गात्राणि यासां परियोजितानि ।
माहा (? गाव ?) स्ततो बिभ्रति य[त्र] पाण्डुतां वाच्यं पुनः किं हि तदीयनृणाम् ॥४१॥ कोवि (टि) सयरिंशदियं सुधाभुजां यदियलाङ्गलकचान्निषेवते । पयस्यसेव्यन्त यदा हि मानवैस्तासां गवां तत् कुतुकं न मन्महे ॥४२॥ पयोधराणां तु चतुष्टयेनो
द्विरत् पयो वीक्ष्य यदीयमूधः । वक्त्रैश्चतुर्भिः प्रथ[य]न् श्रुतिध्वनि धातेति जानन्ति बुधा हृदि स्वके ||४३||
असमया ह्युषया सह कन्यया किल विवाहयितुं सुपयो वरम् । चतुरिका विहितेव विरञ्चिना स्तनचतुष्कमिषात् सुरभिव्रजे ॥४४॥ यत् पातुमीयुः समलोकपालकां सुधां परित्यज्य चतुःस्तमो (नो) पधेः । जानामि यत् पुंसवनं सुधाधिकं सहस्रशो यत्र विभाति (न्ति) धेनवः ॥४५॥
कनकरत्नविभूषितकूणिका, चरणयोजितनूपुरभूषणा ।
अपि गलस्थितमौक्तिकमालिका स्तनयुता सुमुखीव हि सुव्रता ॥ ४६ ॥
इति सप्तभिः काव्यैर्गोवर्णनम् ॥
अथ महिषीवर्णनम् -
यासामतिश्यामतनुत्वचाममून् (?) पयोभृतः पीनपयोधनव्रजान् ।
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