Book Title: Anusandhan 2000 00 SrNo 16
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान-१६ • 12 मृगमदभरप्रोद्यच्चन्द्रभृशं सुरभीकृतैः सितरुचिसमस्वच्छैश्चीरैर्विराजितविग्रहाः ॥५३॥ प्रविजितमनोजन्मानः स्वैर्मनोरमविग्रहे निखिलसुगुणैर्युक्ता मुक्तास्तमोवृजिनवजैः । जिनवरवचोवृन्दं शृण्वत्यजत्रमनुत्तरं . परमसुधियः श्रद्धाभाजो मुखाद् व्रतिनां विभोः ॥५४॥ निजवितरणैर्येषां कल्पद्रुमा इव धिक्कृतात्रिदिवनिलयं जग्मुर्मन्ये प्रणश्य भुवस्तथा । . सकलसुखदं वयं तुर्यव्रतं प्रतिपालयन्त्यसममहिमं यत्र श्राद्धाः सुदर्शनसाधुवत् ॥५५।। कठिनकर्मवातोद्भेदप्रवीणमलं तपःपटलमतुलं श्रद्धावन्तस्तपन्ति मुदां भरात् । दुरितकदलीकन्दच्छेदप्रधानकुठारिकां विशदचरिता यत्र श्राद्धा भजन्ति सुभावनाम् ॥५६॥
इति पञ्चभिः काव्यैः श्राद्धवर्णनम् ॥
अथ श्राद्धीवर्णनम् - शिरोभालश्रोत्राम्बकमुखरदोद्यनिगरणस्फुरद्वक्षो बाहाकरकरशिखांहिप्रभृतिषु । परिष्कारवातं विविधवसुकार्तस्वरकृतं दधत्यो द्योतन्ते नलिननयना यत्र शतशः ॥५७॥ लसद्वक्षोजन्मद्वयकपटकुम्भस्थलयुता वरस्वर्णश्रोत्राभरणयुगघण्टातिसुखमाः। कलापव्याजेनानघतनुकघण्टालिकलिता निजप्राणाधीशाङ्कुशवरवशा दीप्रदशनाः ॥५८॥ प्रवेणीलाङ्गलाः क्रमणरुचिरन्यासनिपुणाः । सुधाज्योतिर्वक्त्राः करटिललना भान्ति सततम् । सुसिन्दूरस्नेहो]त्करपरिविलिप्तस्वकशिरः
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