Book Title: Anukampadan
Author(s): Yugbhushanvijay
Publisher: ZZZ Unknown
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चूहा अत्यारे खापले
वियांराय नहि खप्यारे तो द्वेष करवानी छे, पने धर्म पर गरे समतामा रहेला रुपने धर्म पर राग चल नही ये भूमिकामो नही सूमलाव छे ने चूर करगो अधूरा વિચારો 1. याले.. खच्या गर्ने द्वेष अनुमोहना खे रात्रू छे ने द्वेष के अनुमोहना उरीचे खेटले करीचे खेटले धर्म रांग अम्भसित शाय - निहा गृहा થાય. નિંદા धर्मनो राज
श्लो
खायला
राग
जब्ने उखाना छे. निहा गृहा ये
उरीचे रखने
अगर थाच.
माराडे तमाराधी आयंगे चांप डरखानो चाय पर द्वेष नही
201
श्रेष
हितकारी छ
0413
पूर्व पापने यायने पकडनाश तीव्र पायनों खनुजेध पांडे लल्या अच्छी छोडवानी युल्य वाणा
शय बंधी ते यूल या पानुबंधन छः પલૂ પલાના પુરતા डरता तेने पापनी अनुबंध तेने उपलो पडशे बेना मनमो जेसेडे चाय के तेही अनुमोहना छूटी लय देशी प्रशंसा - शिय कर्तव्यता बुधि नीडजी
.
लय छे
आवांनी वस्तु खाता खासडित पावेतो जोड छे तेम लागे खात्मानो खा स्वभाव नही. कडने ते खाडूमाना विहार छे क्या सूधी हेहने टडावंवा माटे चोषल
खाखा
शरीर छे त्यां सुधी
की छे, तेही चहार्थने खहिंसक रीते सोतो ०३ facit छे तेली तेमा
લાલ
यहा ने हिंसा याय
होते होष
खासठित खेटले
न खावली लेखे करीने नहि जवा
सत्या
ابنها
पापनो खेटले पायनो मेष
वजारा
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