Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj

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Page 7
________________ अर्पण. आचार शास्त्रं सुविनिश्चितं यथा जगाद वीरो जगते हिताय यः तथैव किंचिद् गदतःसएव मे पुनातु धीमान् विनयापिता गिरः [येकाकार.] जे वीर जे रीते आ चोकसाइ भरेखें आचार शास्त्र जगत्-जनोना रुबरु तेमना कल्याण माटे बोल्या छे, तेज महा बुद्धिमान वीर तेज रीते कंइक बोलवा चहाता सेवकनी विनयपूर्वक तेमनी प्रत्ये अर्पण करवामां आवती वाणीने पवित्र करो. आ प्रमाणे. आचारांग सूत्रना टीकाकार शीळाचार्य घणा सादा पण हृदय भेदक शदोमां पोतानी तमाम कृतिने श्रीमान् वीर मसु प्रत्ये अर्पण करीने तेमनी साह्यता मानी छे, अने ते व्याजवीज छे, कारण के जे उतम चीज आपणने जेना पासेथी मळेली होय ते उत्तम चीज पाछी तेनेज अर्पण करवामां आवे तो तेथी आपण जाणे ऋण मुक्त थता होइए वेम आपणुं अंतःकरण कइक अपूर्व शांति मेळवीने प्रफुल्लित थाय छे. माटे अमे पण एज उत्तम पद्धति स्वीकारीने लेमनीज वाणीने गुर्जर भाषामा अनुवादित करवानो अमारो आ अल्प प्रयास विनय नन थइने तेज महात्मा श्रमण भमवान् श्री महावीर प्रभु प्रत्ये अपर्ण करीये छीये. (तथास्तु) to

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