________________
[१४]
प्रस्तावना.
छे, ते भाषा देशना कोई पण भागमां प्रचलित नहीं होवाथी, ते वांचवा अने समजवा हालनो केटलो जैन वर्ग श्रम ले छे तेना आंकडा अमो बहार लाचीए तो पोताना पग परज कुहाडो मारवा जेवुं थाय.
आ सूत्रनुं भाषान्तर बहुत संभाळधी करवामां आव्युं छे अने वळी बधारे खुशी थवा जेहुं एले के जैन संप्रदाय मांहेनां एक करतां वधारे पक्षाळा ओर साथै मळीने आ भाषान्तर तैयार करेल होवाथी ते निष्पक्षपात थाय तेमां नवाइ जेवुं नथी अने तेथी सर्वेने ते रुचीकर थवा संभव छे.
था भाषान्तर अमोए ळांबो घखत यर्या तैयार करेलुं परंतु द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भावना सारा संजोग बच्चे आ महान् पवित्र पुस्तक प्रसिद्ध याय एवी अमारी इच्छा हती. छेडां त्रण चार वर्षथी आपणा आर्य देश अनादृष्टि अने इष्टकाळी बहु पीडा पदे छे तेथी अमो सारा वखतनी राह जोता हता छतi score सुमित्रोना आब्रश्थी आवा संजोगो वचे पण आ पुस्तक प्रसिद्ध करयुं पड्युं छे आ पुस्तकनो व्होळा फैलावो यह सदुपयोग याय एवं अये इच्छी डी.
आ भाषान्तर करवामां मे विद्वान साधु मुनिराजजीए अमोने निष्पक्षपात अने निःस्वार्थ साक्षता आपली छे अने जे पोतानुं नाम सिद्धियां लावका खुशी नयी तेनो अमो अमारा जीगरथी उपकार मानीए छीए.
आ भाषान्तर फरतां भूलधी, द्रष्टिदोषथी, हस्तदोषधी के विचार दोपथी जे कांई मूळ सूत्रकारना अभिप्रायवी विपरीत ययुं हाय मैंने माटे श्री अरिहंत, सिद्ध, केवळी, तथा श्री चतुर्विध संघनी साक्षी असे अंतः करण पूर्वक माफी मागीए छीए.
अग्राद पूर्णिमा
+
प्रो. रवजीभाइ देवराज.
अने जैन स्कोलर्स - मोरवी.