Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj
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[२]
प्रस्तावना. होवायी, तेनो जोइये तेवो लाभ लेवातो नथी अने अमूल्य शीखामणोना । मंडारथी अज्ञान रहे, पडेछे. आ माटे आ पवित्र सूत्रोनां शुद्ध भाषान्तर आपणीज भाषामा करवाना जरुरीयात विष श्री श्वेतांवर कोन्फरन्स अने विद्वान् श्रावको ठराव करीनेज वेसी न रहेता, तेनो अमल तुरतमा थयेलो जोवा इच्छेछे. पण सूत्रोना भाषान्तरथी श्रावक वर्ग माहितगार थाय ए केटलाकने भयरुप लागेलं होवाथी; तेवां भाषान्तरो प्रसिद्ध थां भटकाववा कोशेश ययेलीछे, छतां हालनो जमानो आवी अविचारी अडचणो तरफ अलक्ष करवानी जरूरीयात स्वीकारेछे. आ पुरतक तेदा प्रयासर्नु एक प्रतिफळछे. महा महेनते अने मोटा खर्च आवा भापान्तरो प्रसिद्ध करवानुं साहस, सुज्ञ श्रावकोनी सायतानी आशाएज भमे उठाव्युं छे अने लोको तेनी कदर करशेज.
प्रथमावृत्तिमा रही गयेली भूलो आ आवृतिमा सुधारवामां आधीछे. शंकीत सूत्रोना अर्थ विद्वान् मुनीराजनी सलाह मुजव विस्तारथी समजा. ववामां आव्याछे अने वाळाववोधकारना आशय मुजवनी टीकाओ तेमज स्पष्टिकरण माटे फूटनोट वागेरे दाखल करवा खास काळजी राखी पुस्तकने धनी शके एटलं उपयोगी अने आकर्पणीय वनाघवा विद्वानानी सलाह मुनव वनतो प्रयास कर्योछे. ___ जोके आ पुस्तकने शुद्ध वनाववा बनतो श्रम कर्योछे. तोपण ज्ञाना वर्णीय कर्मना प्रावल्ययी ते निर्दोष होवू असंभवीतछे. आशाछे के सुदा वांचको तेमां रहेली भूलो माटे दरगुजर करी करवा योग्य सुधारा वधारा अमने सुचवशे तो उपकृत यइशं.
प्रसिद्ध कर्ता.

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