Book Title: Ang 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Ravjibhai Devraj
Publisher: Ravjibhai Devraj

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Page 11
________________ प्रस्तावना ( द्वितियात्ति.) - - कोई किमती पुस्तकनी नवी आकृति प्रसिद्ध यायं ए एम यतावी भापछे के ते पुस्तक लोकोमा प्रिय थइ पडयुछे, चोतरफ ते उत्साहथी वंचायछे अने चोतरफथी तेनी सारी मांगणी थायछे. आज काल संख्या घंध नानां घोटां पुस्तको प्रसिद्ध थयां करेछे अने लागवगयी के अर्पण पत्रिकाना मानथी लोको तेनी नकलो खरीद पण करछे. आवा जमानामां धावा अमूल्य पुस्तको प्रचार करवायां ओछी मुश्केली नडती नथी. आ सूत्रनी प्रथमावृत्ति प्रसिद्ध थया पछी तुरतमांज तेनी नकलोनो उठात्र थइ गयो हतो भने चोतरफथी उपरी उपरी मांगणी चालु रही इती प्रथमावृत्तिना टाइप नाना होबाथी तेमज भाषान्तर गुजराती अक्षरमां छपायेल होवाथी, घणा लोको तेनो लाभ लइ शकता नही. माळवा, मेवाड, पारवाड, दक्षिण, मध्य हिंदुस्तान, पंजाब अने सर्व देशोना लोको तेनो लाभ लइ शके माटे मूल पाठ मोटा अक्षर अने भापान्तर पण मोटा नागरी अक्षरमां प्रसिद्ध करेलछे. जैन धर्मर्नु खलं जीवन सर्वत्र प्रणीत सूत्रोछे. जैन धर्मनुं मंडाण पवित्र सूत्रो परजछे. जैन धर्मनी इमारत सूत्रोरुपी पाया उपरज रचायेली छे. जैन धर्मनां नीतिभय फरमानो उंटा रहस्यो भने सुक्ष्म तत्वज्ञानो जाणवानों मुख्य साधन पवित्र सूत्रो परजछे। जैन तरीके जीवन गाळवा माटे सूत्राए किमती कायदाओछे. जे महाप्रभुना एक अक्षर मात्रयी अनेक अमूल्य शिक्षाओना प्रवाह छूटछे, तेवी शीलामणोना भंडाररूप अने संग्रहरूप सूत्रोजछे. तेना दरेके दरेक वाक्य, दरेके दरेक शब्द, अने दरेके दरेक अक्षर ज्ञानामृनथी भरपूरछे. विस्मरण शक्तितुं साम्राज्य स्थपाता, भिन्न भिन्न मगजवाला समर्थ विद्यानोए एकत्र मळी जे पवित्र वाणीनुं गुंथन करेलछे, ते आपणी मजामां छूटे हाथे पंचावानी जरुरछ. सूत्रोनी भाषा आपणामांनां घणाने अप्रचलीत

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