Book Title: Anekant aur Syadwad Author(s): Udaychandra Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan View full book textPage 4
________________ २ : अनेकान्त और स्याद्वाद पल्ला भारी है, कौनसे तर्क ठीक हैं और कौनसे मिथ्या हैं | तक भी तो सम्यक और मिथ्या होते हैं । अतः किसी बातका निर्णय करते समय तर्कके ऊपर भी दृष्टि रखनी होगी कि कोन तर्क कैसा है । कोई भी न्यायाधीश किसी विषय में योग्य निर्णय तभी दे सकता है जब वह वादी और प्रतिवादीके अनुकूल और प्रतिकूल तर्कों को सुन लेता है । इतना सब कहने का तात्पर्य यह है कि वर्तमान समय में प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक बातको तर्ककी तुलापर तोलना चाहता है और विज्ञानके चक्षुसे देखना चाहता है । यह उन्नतिका युग है । वर्तमान युगमें विज्ञान भी चतुर्मुखी उन्नति कर रहा है । अणुबम ( Atom bomb ) और उद्जन बम ( Hydrogen bomb ) जैसे विनाशकारी अस्त्रोंके निर्माणके बाद चन्द्रलोकी यात्रा करके वैज्ञानिकोंने प्रगतिका एक नया अध्याय प्रारम्भ किया है । अन्य ग्रहोंकी यात्राकी योजना भी चालू है । इस प्रकार जो बात विज्ञानसे सिद्ध होती है उसको हर एकको मानना पड़ता है । विज्ञान जो बतला दे और तर्क जो सिद्ध कर दे उस बात के विषय में किसी प्रकारका सन्देह नहीं रहता है । ठीक भी है - हाथके कंगन को आरसीकी क्या आवश्यकता । अगर किसीको अग्निके उष्ण होनेमें सन्देह हो तो वह अग्निको छूकर देख ले | अनुभूत बात में प्रमाणकी आवश्यकता नहीं होती है । कहा भी है - ' प्रत्यक्षे किं प्रमाणम्' - अर्थात् प्रत्यक्ष बातमें प्रमाणकी क्या आवश्यकता है । तात्पर्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति हर एक बातकी सिद्धि के लिए प्रमाण और युक्ति चाहता है । प्रमाण और युक्तिके बिना पुत्र भी पिता की बात पर विश्वास नहीं करता । यहाँ विज्ञान और तर्कके विषय में कुछ कहनेका अभिप्राय इस युगकी विशेषताको बतलाना है । क्योंकि इस युग में विज्ञान और तर्कका बाहुल्य है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36