Book Title: Anekant aur Syadwad
Author(s): Udaychandra
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 10
________________ ८ : अनेकान्त और स्याद्वाद एकान्तवादियोंकी समझमें यह बात नहीं आती कि वस्तुमें अनेक विरोधी धर्म पाये जाते हैं। वे सोचते हैं कि वस्तुमें विरोधी धर्मोंका होना तो नितान्त असंभव है। जैसे कि सिंह और गायका एक स्थानमें रहना असम्भव है। पर ऐसा माननेका कारण उनका दुराग्रह ही है। उनकी दष्टिपर एकान्तवादरूप चश्मा चढ़ा हुआ है। चश्मेका जैसा रंग होता है पदार्थं वैसे ही दिखते हैं। यदि चश्मा हरा हो तो सब पदार्थ हरे दिखते हैं और यदि चश्मा लाल हो तो सब पदार्थ लाल दिखते हैं। इसीप्रकार जिसकी दष्टिपर नित्यकान्तका चश्मा चढ़ा है उसको सब पदार्थ नित्य ही प्रतीत होते हैं और जिसकी दृष्टिपर अनित्यकान्तका चश्मा चढ़ा है उसको सब पदार्थ अनित्य ही प्रतीत होते हैं। वे एकान्तवादके आवेशमें वस्तुको एकान्तरूप ही सिद्ध करनेका प्रयत्न करते हैं। इस विषयमें हरिभद्र सूरिने कितना युक्तिसंगत लिखा हैआग्रही बत निनीषति युक्ति तत्र यत्र मतिरस्य निविष्टा । पक्षपातरहितस्य तु युक्तियत्र तत्र मतिरेति निवेशम् ॥ दुराग्रही व्यक्तिको जिस विषयमें मति होती है उसी विषयमें वह युक्तिको लगाता है। लेकिन पक्षपातरहित व्यक्ति उस बातको स्वीकार करता है जो युक्तिसिद्ध होती है। ___ एकान्तवादी कहते हैं कि जो वस्तु सत् है वह असत् कैसे हो सकती है, जो वस्तु नित्य है वह अनित्य कैसे हो सकती है। सत् वस्तुके असत् होनेमें उन्हें विरोध आदि दोष प्रतीत होते हैं। ऐसा कहनेवालोंको आप्तमीमांसाके निम्न श्लोक पर थोड़ा ध्यान देना चाहिए सदेव सर्व को नेच्छेत् स्वरूपादिचतुष्टयात् । असदेव विपर्यासान्न चेन्न व्यवतिष्ठते ॥ आप्तमीमांसा १५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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