Book Title: Anekant aur Syadwad
Author(s): Udaychandra
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 22
________________ २० : अनेकान्त और स्याद्वाद वस्तु अनेकान्तात्मक है। वस्तुको अनेकान्तात्मक सिद्ध करनेके लिये किसी प्रमाणको आवश्यकता नहीं है। वह तो स्वयं अनुभव सिद्ध है । कहा भी है __ अनेकान्तात्मकं वस्तु गोचरः सर्वसंविदाम् । अनेकान्तदर्शन विचारोंकी शुद्धि करता है। वह मानवोंके मस्तिष्कसे दूषित हठपूर्ण विचारोंको दूर कर शुद्ध एवं सत्य विचार के लिए प्रत्येक मनुष्यका आह्वान करता है। वह कहता है कि वस्तु विराट् है, अनन्तधर्मात्मक है। अपेक्षाभेदसे वस्तुमें अनेक विरोधी धर्म रहते हैं। उन अनेक धर्मों से प्रत्येक धर्म परस्पर सापेक्ष है। वे सब एक ही वस्तुमें विना किसी वैरभावके प्रेमपूर्वक रहते हैं। विरोधी होते हुए भी वे विरोधका अवसर नहीं आने देते। उनमें कभी झगड़ा होता ही नहीं है। यदि संसारके राजनीतिज्ञ भी अनेकान्तके स्वरूपको ठीक तरहसे समझ लें तो बहुत कुछ संभव है कि संसारमें युद्धोंका नग्न नृत्य देखनेको न मिले। क्योंकि अनेकान्तसे अनन्तधर्मसमताकी तरह मानवसमताका भी बोध हो सकता है और मानवसमताका ज्ञान होनेसे सब झगड़ों का सदाके लिए अन्त हो जाय तो कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। इसलिए वस्तुस्थितिका ठीक-ठोक प्रतिपादन करनेवाले अनेकान्त तत्त्वज्ञानकी संसारको अत्यन्त आवश्यकता है। इस अनेकान्तदर्शनसे मानस शुद्धि होती है। स्याद्वाद ऊपर यह बतलाया जा चुका है कि प्रत्येक वस्तु अनन्त धर्मात्मक है। स्याद्वाद उस अनन्त धर्मात्मक वस्तुके प्रतिपादन करने का साधन या उपाय है । अनेकान्त वाच्य है और स्याद्वाद वाचक । अनेकान्त और स्याद्वाद शब्द पर्यायवाची नहीं हैं। हाँ, अनेकान्तवाद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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