Book Title: Anekant aur Syadwad
Author(s): Udaychandra
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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अनेकान्त और स्याद्वाद : १७
धर्म एक साथ एक व्यक्तिमें निर्विरोधरूपसे रहते हैं इस बातको कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता । इस तरह संसारका प्रत्येक पदार्थ, विरोधी धर्मोंका अविरुद्ध स्थल है और इसीका नाम अनेकान्त है । अनेकान्त दर्शन यह बतलाता है कि वस्तुमें सामान्यतया विभिन्न अपेक्षाओंसे अनन्त धर्म रहते हैं । किन्तु प्रत्येक धर्म अपने प्रतिपक्षी धर्मके साथ वस्तुमें रहता है, यह प्रतिपादन करना ही अनेकान्त दर्शनका विशेष प्रयोजन है ।
अनेकान्तदर्शनकी आवश्यकता
वस्तुके यथार्थ परिज्ञानके लिये अनेकान्तदर्शनकी महती आवश्यकता है । किसी वस्तु या बातको ठीक-ठीक न समझकर उसके ऊपर अपने हठपूर्ण विचार या एकान्त अभिनिवेश लादनेसे बड़ेबड़े अनर्थों की सम्भावना है । इस विषय में छह जन्मान्ध व्यक्तियोंकी कथा प्रसिद्ध है । जन्मसे अन्धे होनेके कारण उन्होंने हाथीको कभी नहीं देखा था । एक समय उनको एक हाथी मिल गया। उनमें से एकने हाथीका कान पकड़ा, एकने पेट पकड़ा, एकने सूँड़ पकड़ी । शेष व्यक्तियोंने भी भिन्न-भिन्न अवयव पकड़े । कानको पकड़नेवाले व्यक्तिने समझा कि हाथी सूपके समान है । इसीप्रकार अन्य व्यक्तियोंने भी अपनी-अपनी पकड़के अनुसार हाथीको वैसा ही समझा । एक समय वे लोग हाथो के विषय में चर्चा करने बैठे । कान पकड़नेवाले व्यक्तिने कहा कि हाथी सूप जैसा होता है । पैर I पकड़नेवाले व्यक्तिने कहा कि हाथी खंभे जैसा होता है । पेट पकड़नेवाले व्यक्तिने कहा कि हाथी पहाड़ जैसा होता है । इसीप्रकार शेष व्यक्तियोंने भी अपनी-अपनी कल्पना के अनुसार हाथी के आकारका निर्देश किया । अब क्या था, उनमें परस्पर झगड़ा होने लगा । प्रत्येक समझने लगा कि अन्य सब मुझे झूठा सिद्ध करना चाहते हैं । सब एक दूसरेको भला-बुरा कहने लगे । इतने में ही
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