Book Title: Anekant aur Syadwad Author(s): Udaychandra Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan View full book textPage 3
________________ अनेकान्त और स्याद्वाद उपोद्धात वर्तनान युग वैज्ञानिक ( Scientific ) और बौद्धिक ( Rational ) युग है। इस युगमें प्रत्येक बात तर्क ( Logic ) की कसौटीपर कसी जाती है और जो बात तर्ककी कसौटीपर कसने पर खरी नहीं उतरती है उसे माननेके लिये कोई तैयार नहीं होता। इस युगमें विश्वास ( Belief ) का तो एक प्रकारसे अन्त ही हो रहा है। शास्त्रमें क्या-क्या लिखा है इस बातको कोई सुनना नहीं चाहता। सबके सामने एक ही दृष्टि है और वह है विज्ञान ( Science ) और तर्ककी कसौटी। यद्यपि कुछ लोग तर्कको जीवनमें विशेष महत्त्व नहीं देते हैं। उनका कहना है कि तर्क भी तो परस्पर विरोधी देखे जाते हैं। एक ही विषय में अनुकूल और प्रतिकूल तर्कोका सद्भाव उपलब्ध होता है। ईश्वरको सृष्टिकर्ता सिद्ध करनेमें तर्क दिये जाते हैं, लेकिन ईश्वरमें सृष्टिकर्तृत्वका अभाव सिद्ध करने में भी ठीक उससे विपरीत तर्क दिये जाते हैं। कहा भी हैतर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्ना नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् । धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्थाः॥ अतः उनकी दृष्टिमें तर्कके द्वारा किसी बातका निर्णय करना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। लेकिन वर्तमान युगमें तर्कका ही आधिपत्य है। किसी विषयमें अनुकूल और प्रतिकूल तर्कोका ना बुरा नहीं है, क्योंकि इससे वस्तुके स्वरूपके निर्णय करने में बी सहायता मिलती है। यहाँ यह देखना चाहिये कि किसका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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