Book Title: Anekant Ras Lahari
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 20
________________ बड़ेसे छोटा और छोटेसे बड़ा १५ तरह समझ गया हूँ । अध्यापक — अच्छा, अब मैं एक बात और पूछता हूँ-कल तुम्हारी कक्षा में जिनदास नामके एक स्याद्वादी - स्याद्वाद न्यायके अनुयायी — आए थे और उन्होंने मोहन लड़केको देखकर तथा उसके विषय में कुछ पूछ-ताछ करके कहा था 'यह तो छोटा है' । उन्होंने यह नहीं कहा कि 'यह छोटा ही है' यह भी नहीं कहा कि वह 'सर्वथा छोटा है' और न यही कहा कि यह 'अमुककी अपेक्षा अथवा अमुक विषय में छोटा है,' तो बतलाओ उनके इस कथनमें क्या कोई दोष आता है ? और यदि नहीं आता तो क्यों नहीं ? इस प्रश्नको सुन कर विद्यार्थी कुछ चक्कर में पड़ गया और मन-ही-मन उत्तर की खोज करने लगा। जब उसे कई मिनट होगये तो अध्यापकजी बोल उठे - 'तुम तो बड़ी सोच में पड़ गये ! इस प्रश्न पर इतने सोच-विचारका क्या काम ? यह तो स्पष्ट ही है कि जिनदासजी स्याद्वादी हैं, उन्होंने स्वतंत्ररूपसं 'ही' तथा 'सर्वेथा' शब्दों का साथमें प्रयोग भी नहीं किया है, और इसलिये उनका कथन प्रकट रूपमें 'स्यात्' शब्द के प्रयोगको साथमें न लेते हुए भी 'स्यात्' शब्द से अनुशासित है- किसी अपेक्षा विशेषको लिये हुए हैं। किसीसे किसी प्रकारका छोटापन उन्हें विवक्षित था, इसीसे यह जानते हुए भी कि मोहन अनेकोंसे अनेक विषयोंमें 'बड़ा' हैं, उन्होंने अपने विवक्षित अर्थके अनुसार उसे उस समय 'छोटा' कहा है । इस कथनमें दोषकी कोई बात नहीं है । तुम्हारे हृदयमें शायद यह प्रश्न उठ रहा है कि जब मोहन में छोटापन और बड़ापन दोनों थे तब जिनदासजीने उसे छोटा क्यों कहा, बड़ा क्यों नहीं कह दिया ? इसका

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