Book Title: Anekant Ras Lahari
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 41
________________ ३६ अनेकान्त-रस- लहरी नाम भी नहीं चाहा, उन्होंने गुप्त दान दिया है और गुप्त दानका महत्व अधिक कहा जाता है, तुमने उन्हें छोटा दानी कैसे कह दिवा ? खरा उनके विषयको भी कुछ स्पष्ट करके बतलाओ । विद्यार्थी - सेठ रामानन्दका दान तो वास्तवमें कोई दान ही नहीं है— उसपर दानका कोई लक्षण घटित नहीं होता और इस लिये वह दानकी कोटिमें ही नहीं आता गुप्तदान कैसा ? वह तो स्पष्ट रिश्वत अथवा घूस है, जो एक उच्चाधिकारीको लोभमें डालकर उसके अधिकारोंका दुरुपयोग कराने और अपना बहुत बड़ा लौकिक स्वार्थ सिद्ध करनेके लिये दी गई है और उस स्वार्थसिद्धिकी उत्कट भावना में इस बातको बिल्कुल ही भुला दिया गया है कि वनस्पतिघीके प्रचारसे लोकमें कितनी हानि हो रही है - जनताका स्वास्थ्य कितना गिर गया तथा गिरता जाता है और वह नित्य-नई कितनी व कितने प्रकारकी बीमारियोंकी शिकार होती जाती है, जिन सबके कारण उपका जीवन भाररूप हो रहा है। उस सेठने सबके दुख-कष्टों की ओर से अपनी आँखें बन्द करली है— उसकी तरफसे बूढ़ा मरो चाहे जवान उसे अपनी इत्यासे काम! फिर दानके अंगस्वरूप किसीके अनुग्रह - उपकारकी बात तो उसके पास कहाँ फटक सकती है ? वह तो उससे कोसों दूर है । महात्मा गान्धी जैसे सन्तपुरुष वनस्पतिघीके विरोध में जो कुछ कह गये हैं उसे भी उसने ठुकरा दिया है और उस अधिकारीको भी ठुकारनेके लिये राजी कर लिया है जो बात-बातमें गांधीजीके अनुयायी होने का दम भरा करता है और दूसरों को भी गांधीजी के आदेशानुसार चलनेकी प्रेरणा किया करता है । ऐसा ढोंगो, दम्भी, बगुला-भगत उच्चाधिकारी जो तुच्छ लोभमें पड़कर अपने कर्तव्यसे च्युत, पथसे

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