Book Title: Anekant Ras Lahari
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 36
________________ बड़ा और छोटा दानी ३१ 'क्या तुम्हें तत्वार्थ सूत्र के दान - प्रकरणका स्मरण नहीं है ? क्या तुम्हें नहीं मालूम कि दानका क्या लक्षण है और उस लक्षणसे गिरकर दान दान नहीं रहता ? क्या तुम्हें उन विशेषताओं का ध्यान नहीं है जिनसे दान के फलमें विशेषता - कमी-बेशी आती है और जिनके कारण दानका मूल्य कमोबेश हो जाता अथवा छोटा-बड़ा बन जाता है ? और क्या तुम नहीं समझते हो कि जिस दानका मूल्य बड़ा - फल बड़ा वह दान बड़ा है, उसका दानी बड़ा दानी है, और जिस दानका मूल्य कम - फल कम वह दान छोटा है, उसका दानी छोटा दानी है— दानद्रव्यकी संख्यापर ही दानका छोटा-बड़ापन निर्भर नहीं है ?" इन शब्दों के आघात से विद्यार्थि- हृदय के कुछ कपाट खुल गये, उसकी स्मृति काम करने लगी और वह ज़रा चमककर कहने लगा - 'हाँ, तत्वार्थ सूत्र के सातवें अध्याय में दानका लक्षण दिया है और उन विशेषताओंका भी उल्लेख किया है जिनके कारण दानके फल में विशेषता आती है और उस विशेषताकी दृष्टिसे दानमें भेद उत्पन्न होता है अर्थात् किसी दानको उत्तम -मध्यमजघन्य अथवा बड़ा-छोटा आदि कहा जा सकता है । उसमें बतलाया है कि 'अनुग्रह के लिये - स्व-पर- उपकारके वास्ते - जो अपने धनादिकका त्याग किया जाता है उसे 'दान' कहते है और उस दान में विधि, द्रव्य, दाता तथा पात्रके विशेषसे विशेषता आती है - दानके ढंग, दानमें दिये जानेवाले पदार्थ, दातारकी तत्कालीन स्थिति और उसके परिणाम तथा पानेवालेमें गुणसंयोग के भेद से दान के फल में कमी-बेशी होती है। ऐसी स्थितिमें यह ठीक है कि दानका छोटा-बड़ापन केवल दानद्रव्यकी संख्यापर निर्भर नहीं होता, उसके लिये दूसरी कितनी ही बातों को

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