Book Title: Anekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04 Author(s): Jaikumar Jain Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 4
________________ अनेकान्त/54-1 महावीर भगवान् ___ - सुभाष जैन महावीर भगवान्, तुम्ही ने जीवो का उद्धार किया। सच्चे सुख की राह दिखाकर, दुनिया का उपकार किया।। एक रात त्रिशला ने देखे, सोलह सपने अनजाने। पूज्य पिता सिद्धार्थ लगे तब, उनका मतलब समझाने। तीर्थकर का जीव गर्भ में, आया तुमको अपनाने। दिव्य देवियो ने तब आकर, माता का सत्कार किया।। महावीर भगवान...1 तुमने जन्म लिया तो छाई, हर आंगन में खुशहाली। जनता नाच-नाच हर्षाई, सुख वैभव से वैशाली। 'वर्द्धमान' के नामकरण पर, महक उठी डाली-डाली। थमे हुए से सारे जग में, नवजीवन सचार किया।। महावीर भगवान...2 वन में जा पहुंचे तप करने, त्याग राज्य का सिंहासन। धारण करके रूप दिगम्बर, छोडे मासारिक साधन। केशलोच कर निज हाथों से. आत्म सुख मे हुए मगन। बारह धर्म भावनाओं पर, निशदिन गहन विचार किया। महावीर भगवान...3 जब आहार हेतु नगरी में, आए महाव्रत के धारी। पड़गाहन को खड़े हुए थे, द्वार-द्वार पर नर-नारी। तभी सींखचो में इक अबला, दीखी बन्दी बेचारी। उसी चन्दना के हाथों से, कोदों को स्वीकार किया।। महावीर भगवान...4 द्वादस बरस किया तप तुमने, तीन लोक दुतिवंत हुए। केवल-ज्ञान हुआ तब तुमको, तीर्थकर अरिहत हुए। समव-शरण रच दिया सुरों ने, मंडप दिव्य दिगत हुए। गौतम गणधर ने वाणी को, समझा और प्रसार किया।। महावीर भगवान...5 कातिक मावस के प्रभात में, ध्यानमग्न यों लीन हुए। शेष अघाति कर्म नशाकर, शिवपद पर आसीन हुए। जीव मात्र को दिव्य रत्नत्रय-मार्ग दिखा स्वाधीन हुए। देवो ने की चरण-वन्दना, जग ने जय-जयकार किया।। महावीर भगवान...6 आए आज 'सुभाष-शकुन' भी, शरण तुम्हारी, हे भगवन्। भटकें है अज्ञान-तिमिर में, करदो तनिक मार्ग दर्शन। कर्म-बन्ध से छुट जायें हम, छूटे यह नश्वर जीवन। चलते हैं जो पद-चिन्हों पर, उनका बेड़ा पा किया।। महावीर भगवान...7 -महासचिव, वीर सेवा मंदिर, 21, दरियागंज, नई दिल्ली-2 cosecececocacocececececececececopedaPage Navigation
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