Book Title: Anekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 4
________________ अनेकान्त वीर सेवा मंदिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ जनवरी-मार्च | वर्ष ५२ | किरण १ वी.नि स. २५२५ वि स. २०५५-५६ ૧૬૬૬ चेतन को उद्बोधन वे कोई निपट अनारी देख्या आतम राम ।। जिन सौं मिलना फेर बिछरना तिन सौ कैसी यारी। जिन कार्मों में दुख पावे है तिन सौ प्रीत करारी वे कोई ।।१।। बाहिर चतुर मूढ़ता घर में लाज सवै परिहारी। ठग सों नेह बैग साधुन सों ये बातें विस्तारी।। वे कोई ।।२।। सिंहडा (पिंजरा) भीतर सुख माने, अक्कल सबै विसारी। जा तरु आग लगी चारो दिस, बैठ रह्यो' तिहडारी।। वे कोई ।।३।। हाड मांस लोह की थैली तामैं चेतनधारी। द्यानत तीन लोक को ठाकुर क्यों हो रह्यौ भिखारी।। वे कोई ।।४।।

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