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किरण ३]
पराक्रमी जैन
जैनधर्मका यह प्रचार, शान्तिका यह साम्राज्य की बागडोर छीन ली। खारवेलने अपने शासनकालजैनधर्मद्वेषी मौर्य सेनापति पुष्यमित्रसे न देखा गया में जो जो लोकोत्तर और वीरता-धीरताके कार्य किये, उसने विश्वासघात करके धोखेसे मौर्य सम्राट् इसकी साक्षी हाथी गुफामें अङ्कित शिलालेख आज वृहद्रथको मार डाला और स्वयं सम्राट् बन बैठा'। भी दे रहा है। ___इस पुष्यमित्रने अपने शासनकालमें बौद्धों और इस प्रकार दोबार भारतको विदेशियोंकी अधीजैनोंपर वह-वह कहर ढाये, अत्याचार किये, जो नतासे जैनसम्राटोंने बचाया । जब जैन साम्राज्य नष्ट महमूद गजनवी, अलाउद्दीन, तैमूर, औरङ्गजेब, कर दिये गये और यहाँ अनेक दूषित वातावरण नादिरशाहने भी न किये होंगे?
उत्पन्न होगये, तब भारत मुसलमानों द्वारा विजित
कर लिया गया । इस मुस्लिम कालीन भारतमें भी . इसी समय (ई० स० १८४) यवनराज दिमेत्रने
मनन राजपूतानेमें, कर्माशाह, भामाशाह, दयालशाह, आशाभारतपर आक्रमण कर दिया, वह चाहता था कि शाह, वस्तपालः तेजपाल, विमलशाह, भीमसी भारतपर वह स्वयं शासन करे । भारतको पराधीनता कोठारी आदिने जो जो वीरता-धीरताके कार्य किये के पाशमें बाँधनेका यह दूसरा प्रयत्न था। किन्तु हैं, वे राजपूतानेके कण-कणपर अङ्कित हैं। इन्हीं दिनों कलिङ्गका राजा खारवेल जो कि जैन था, द्वितीयाके चन्द्रमाके समान बढ रहा था। उसने
१ इस वीर पराक्रमी सम्राटका जीवन लेखककी "आर्यदिमेत्र और पुष्यमित्र दोनोंके हाथसे भारतके शासन
कालीन भारत” पुस्तकमें देखिये।
२ भारत परतन्त्र क्यों हुआ ? इसका विस्तार पूर्वक वर्णन १ मौर्य राजाओंका विशेष परिचय प्राप्त करनेके लिये लेखक लेखककी "आर्यकालीन भारत" पुस्तकमें मिलेगा। .. की “मौर्यसाम्राज्यके जैनवीर" १७३ पृष्ठकी पुस्तक ३ इन सब शूरवीरोंका परिचय राजपूतानेके "जैन वीर" ..देखनी चाहिये।
पुस्तकमें देखिये ।
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