Book Title: Ananda
Author(s): H C Bhayani, Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 11
________________ ७ दोहे का भावार्थ का निर्देश १. सबके शरीर में चिदानन्द, सानन्द जिन रहते हैं । २. आत्मा निरंजन शिव, परमानन्द है। कुदेव की पूजा नहीं करनी चाहिये । गुरु के बिना लोग अन्ध होते हैं। ३. अडसठ्ठ तीर्थों में घूमना निरर्थक है । घटस्थ देव को वन्दन करना चाहिये । ४. जब तक भीतर पाप मल भरा हुआ है तब तक बाह्य स्थान निर्रथक है। ५. ध्यान सरोवर अमृत जल से भरा हुआ है । मुनिवर उसमें स्नान करते हैं और आठ कर्मों का मल धो डालते हैं इससे निर्वाण का पथ निकट हो जाता है। त्रिवेणी में स्नान करना और सागर में झंपापात करना निरर्थक है । ध्यानाग्नि से कर्म मल जला देना चाहिये । ७. शास्त्र पठन और अचेतन मूर्ति का पूजन निरर्थक है। ८. कोई व्रत,तप, संयम, शील और महाव्रतों का पालन करे तो भी यदि परमकला ____को न जाने तब तक संसार भ्रमण करता रहता है । ९. केशलोच, जटाधारण वगैरहा निरर्थक है । एक आत्म ध्यान ही भव के पार ___ले जाता है। १०. दर्शन और ज्ञान के बिना परिषह सहना निरर्थक है । ११. तिथी भोजन, पानीपात्र भोजन आदि भी आत्म ध्यान के बिना यमपूरीके वास से बचा नहीं सकते। १२. बाह्य लिंग निरर्थक है । आत्मध्यान से ही शिवपूरी में वास होता है। १३. आत्मदेव के चिंतन बिना जिन पूजा, गुरु स्तुति और शास्त्राध्ययन निरर्थक है। १४. जो सिद्धों का ध्यान धरता है वह निर्वाण पाता है । १५. जिन भी तारक नहीं बन सकते । आत्मा को स्वयं प्राप्त करना होता है। १६. जेसे काष्ट में अग्नि और पुष्प में परिमल रहता है वैसे देह में जीव रहता है। १७. जो शिव देव है वह बंध, मल पाप और पूण्य से परे है। १८. हरि, हर, .ब्रह्मा भी, किसीकी मन और बुद्धि भी उसको जानते नहीं। वह शरीर

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