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३३. ब्रह्मा, मुरारि, इन्द्र, फणीन्द्र, चक्रवर्ती सब उसको वन्दन करता है । ३४. गुरुकृपा से केवलज्ञान होता है। सचराचर का ज्ञान होता है, सहज स्वभाव में . स्थिर रहा जाता है। ३५. यदि सद्गुरु प्रसन्न हो तो मुक्ति पाई जाती है तो उसका ध्यान धरना । ३६. गुरु जिनवर है, गुरु सिद्ध है, गुरु तीन व्रतों का सार है क्योंकि वह आत्मा
और पर का भेद बताता है । जिससे भवजल को पार किया जाता है । ३७. पाषाण की पूजा मत करना, तीर्थ भ्रमण मत करना, सचेन्द्र देव की पूजा
करना। सद्गुरु उसका रहस्य बताता है ।