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२८. हे आनन्द, सदगुरु परमानंद का स्वभाव बताते हैं और शिष्य यह सुनता है। इस तरह जो शिष्य अपना भाव निर्मल करता है उसके लिये परम ज्योति उल्लसित होती है।
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३०. हे आनन्द, जैसे केसरि सिंह हाथी के व्रज गंडस्थल पर प्रहार करता है वैसे निरहंकार रहकर (अहंकार का विनाश करके) परम समाधि को मत भूल :
३१. हे आनन्द, जो समरस भाव से रंगा हुआ है वही आत्मा को देख सकता है । वह आत्मा को जानता है उसका अनुभव करता है और आलंबन रहित होता
३२. हे आनन्द, पहले किये कर्मों की जब निर्जरा करता है और नये कर्म नहीं होने देता उसकी आत्मा को रंग नहीं लगता और उसको केवलज्ञान प्राप्त होता
... ३३. हे आनन्द, जो देव दुंदुभि बजाते हैं, जो ब्रह्मा और विष्णु की स्तुति करता है। इन्द्र नागेन्द्र और चक्रवर्ती...
३४. हे आनन्द, सदगुरु के उपदेश की कृपा से केवलज्ञान भी उत्पन्न होता है। जो सहज स्वभाव में रहता है वह सचराचर विश्व को जानता है।
३५. हे आनन्द, सदगुरु तुष्ट दोने से मुक्ति रूपी स्त्री के गृह में निवास प्राप्त होता है । इसलिये वैसे गुरु का नित्य नित्य ध्यान करना चाहिये, जब तक हृदय के श्वासोच्छ्वास चलते हैं।
. ३६. हे आनन्द, गुरु जिनवर हैं, गुरु सिद्ध हैं, गुरु शिव हैं, गुरु रत्नत्रय का सार हैं । वे आत्मा और पर का ज्ञान बताते हैं जिससे तू भवजल को पार करेगा।
३७. हे आनन्द, पाषाण की पूजा करके मस्तक मत धुनाओ। तीर्थों में क्यों भ्रमण करते हो । देव सचेतन होता है, यह सच्चा भेद गुरु बताते हैं ।