Book Title: Ananda
Author(s): H C Bhayani, Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 24
________________ 21 ३८. हे आनन्द, जो (सच्चा धर्म) सुनता है, सुनाता है, उसका अनुभव करता है सो सिवपुरी जाता है। कर्मों का विनाश करने वाला भव को नष्ट करने वाला भव्यजन का हमारे हृदय में स्थान है। ३९. हे आनन्द, मिथ्यादृष्टि के सम्पर्क से उसको सुनते ही हृदय व्याकुल होता है, मस्तिष्क में शोक उपजता है, हृदय में अत्यन्त क्रोध या अस्वस्थता बढ़ती - ४०. हे आनन्द, जिनके उपदेश सुनकर आनन्द उल्लासित होता है, जिसके भाल पर ज्ञान तिलक है और मस्तक मुकुट मणि से शोभता है। वे गुरु शिष्यों के लिये गोपालक जैसा । (हित रक्षक) है । ४१. हे आनन्द, जिसका आनन्द तिलक नाम है उसने यह (काव्य) हिंडोला छंद में गाया है (रचा है) महाणंदि (गुरु ने दिखलाए मार्ग से) अब मैं सिवपुरी जा ४२. हे आनन्द, मैं अपने गुरु पर बलिदान दिया जाता हूँ (उनका मैं बलिहारी हूँ) जिन्होंने मन का सन्देह टाल दिया है। जिन्होंने यह (प्रकाश) बिना तैल और बिना बत्ती किया है। ४३. हे आनन्द, महानंदी देव कहते हैं कि सदगुरु की वाणी का जय हो, जिसको जानने से (जानने वाला) सिवपुरी जाता है और चिदानंद की सेवा करता है

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