Book Title: Anand Pravachan Part 12 Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana Publisher: Ratna Jain PustakalayaPage 14
________________ ( ११ ) सच्चा आनन्द कहीं बाहर नहीं, हमारे अन्दर ही विद्यमान है । आचार्य सम्राट अपने प्रवचनों में, वार्तालाप में उसी आनन्द को प्राप्त करने की कुञ्जी बताते हैं। भूलेभटके जीवन-राहियों का सच्चा पथ-प्रदर्शन करते हैं । आचार्य सम्राट के प्रवचनों को सुनने का मुझे अनेक बार अवसर प्राप्त हुआ है और उनके प्रवचन साहित्य को पढ़ने का सौभाग्य भी मुझे मिला है। जिसके आधार से मैं यह साधिकार कह सकता हूँ कि आचार्य सम्राट एक सफल प्रवक्ता हैं । यों तो प्रत्येक मानव बोलता है, पर उसकी वाणी का दूसरों के मानस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता; किन्तु आचार्य सम्राट जब भी बोलना प्रारम्भ करते हैं तो श्रोता-गण मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं । श्रोताओं का मन-मस्तिष्क उनकी सुमधुर भावधारा में प्रवाहित होने लगता है। आचार्यप्रवर की वाणी में शान्त-रस, करुण-रस, हास्य-रस, वीररस की सहज अभिव्यक्ति होती है । उसके लिए आपश्री को प्रयास करने की आवश्यकता नहीं होती। यही कारण है कि लोग आपश्री को वाणी का जादूगर मानते हैं। आपश्री की वाणी में मक्खन की तरह मृदुता है, शहद की तरह मधुरता है, और मेघ की तरह गम्भीरता है। भावों की गंगा को धारण करने में भाषा का यह भगीरथ पूर्ण समर्थ है । आपनी की वाणी में ओज है, तेज है, सामर्थ्य है । __ आपश्री के प्रवचनों में जहाँ एक ओर महान आचार्य कुन्दकुन्द, अमृतचन्द्र की तरह गहन आध्यात्मिक चिन्तन है, आत्मा-परमात्मा की विशद चर्चा है तो दूसरी ओर आचार्य सिद्धसेन दिवाकर और अकलंक की तरह दार्शनिक रहस्यों का तर्कपूर्ण सही-सही समाधान भी है । स्याद्वाद, अनेकान्तवाद, नय, निक्षेप, सप्तभंगी का गहन किन्तु सुबोध विश्लेषण है । एक ओर आचार्य हरिभद्र, हेमचन्द्र की तरह सर्वविचार समन्वय का उदात्त दृष्टिकोण प्राप्त होता है तो दूसरी ओर आनन्दघन व कबीर की तरह फक्कड़पन और सहज निश्छलता दिखाई देती है। एक ओर आचार्य मानतुग की तरह भक्ति की गंगा प्रवाहित हो रही है तो दूसरी ओर ज्ञानवाद की यमुना बह रही है । एक ओर आचार क्रान्ति का सूर्य चमक रहा है तो दूसरी ओर स्नेह की चारुचन्द्रिका छिटक रही है । एक ओर आध्यात्मिक चिन्तन की प्रखरता है तो दूसरी ओर सामाजिक समस्याओं का ज्वलन्त समाधान है । संक्षेप में हम कह सकते हैं कि आचार्यप्रवर के प्रवचनों में दार्शनिकता, आध्यात्मिकता, साहित्यिकता आदि सब कुछ है । मेरे सामने आचार्यप्रवर के प्रवचनों का यह बहुत ही सुन्दर संग्रह है। ‘गौतम कुलक' पर उनके द्वारा दिये गये मननीय प्रवचन हैं। प्रवचन क्या हैं, चिन्तन और अनुभूति का सरस कोष है । विषय को स्पष्ट करने के लिए जहाँ आगम, उपनिषद, गीता, महाभारत, कुरान, पुराण तथा आधुनिक कवियों के अनेक उद्धरण दिये गये हैं वहाँ पाश्चात्य चिन्तक फिलिप्स, जानसन, बेकन, फूले, साउथ, टालस्टाय, ईसामसीह, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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