Book Title: Agamoddharak Kruti Sandohasya Part 04
Author(s): Manikyasagarsuri
Publisher: Mithabhai Kalyanchandji Pedhi

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Page 10
________________ AD ___ आगमो द्धारककृति-KI दानधर्मः सन्दोहे दानधर्मः (1) परमायमाय(माण)मानं मानोदलितालिकालिदुरितालिं / अपचितपापोपचितिं चेतितलोकं जिनं यजत ॥शा धर्मो द्विविधो गीतः श्रावकयतिभेदतो जिनः शास्त्रे / तत्राद्यो ह्यपवादः परोऽसमर्थाय यद्देयः // 2 // यत्सङ्काशः श्राद्धो नादीक्षिदेवविभवभक्षयिता। केवलिनापि समर्थस्तद् व्याधिरिव बुधोन्नेयम् // 3 // न भवति दर्शनरहितः श्रामण्ये मोक्षदायके योग्यः / देवस्वभोगपीनो न दर्शनी जातुचिद्भवति // 4 // तादृशमपरं वा विभुरवेत्य नैवार्पिपत् श्रमणभावं / तस्मै परमियता नाधिकारिताव्यत्ययो रम्यः // 5 // यद्वा ज्ञान्यादिष्टं कार्यमर्वाग्दृशां विधेयं स्यात् / प्लवक इवाप्लवको गत आपगाया रये कथं जीवेत् 1 // 6 // असमर्थमृते मुनिताचरणेऽणुविरतिदेशने दुरितं / स्थावरवधानुमत्या गीतं नान्यत्र पसृतज्ञातात् // 7 // इच्छाविगमोऽणुव्रतकथने नोत्सहेताग्रतस्तेन / आदौ परं निदिश्यापरमसहिष्णोः समाख्येयम् // 8 // धर्मश्चतुर्विधोऽखिलकर्मामयनाशकोज जिनवैद्यैः / दानाचारतपस्याभाव विधानैः समादिष्टः // 9 // न ममीकारापगमं निजस्य लोके ऋते कृती रुचिरा। सर्वानर्थनिदानं जगति न तमन्तरा कश्चित् // 10 // तस्य निखिलस्य वर्जनमनगाराणां ममत्वरहितानां / देहोपकरणवृन्दे विश्वनिरपेक्षबुद्धिमताम् // 11 // येषां न तथा मोहो व्युच्छिन्नो देशतस्तु चरणस्य / आपत्क्षयमिह तेषां दानादिर्देशतो विरतिरो // 12 // साधूनां शीलतपोभावा एतत्त्रयं भवेन्मुख्यम् / दानं तु गृहस्थानामेकं द्रव्यादिसद्भावात् // 13 // निर्मम आचारलीन आचाराढयो दधीत तीव्रतपः / तपसा लीनविकारः समाप्नुयाद् भावनाः शुद्धाः // 14 // यस्तु गृहादिपरिग्रहसक्तो न तथा क्रियातपोभावान् / कर्तुमलं तत्तेभ्यो दिष्टो दानस्य विधिरिष्टथै // 15 // नासौ -naa केलानमागर भूरि ज्ञान मंदिर श्री महावार जेन माराधना केन्द्र, कोणा // 1 // HIPP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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