Book Title: Agam Jyot 1976 Varsh 12
Author(s): Agmoddharak Jain Granthmala
Publisher: Agmoddharak Jain Granthmala
View full book text
________________
અગમતા क्रोधवह्निमहाम्भोधि, गर्वभूमृच्छिदेऽशनि ।
मायाहिनागदमनी, लोभरोषोगिरि नुवे ॥४॥ अज्ञानान्धे तमस्यर्क, हास्यार्कबादलोच्चयं ।
कामवादलवात्याभ, रतिबात्यागिरि श्रये ॥५॥ प्रेमसानुपवि वर्य, पविभृत्ततिसेवितं ।
त्वां सेवे सर्वदा लुब्ध-स्तवोक्तिसौरभोच्चये ॥६॥ सदाऽहं धारये चित्ते, जिनेन्द्र ! तव शासनं ।
पापगीं सुकृतश्लाघां, चतुःशरणसंश्रयं ॥णा
NATO

Page Navigation
1 ... 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162