Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur
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उ. टीका
अ.
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उत्तर त आचार्यस्य बधाय तेन पृष्टिस्थितेन क्षुल्लकन शिलामुक्ता आयान्ती आचार्येण दृष्ट्वा स्वपादौ प्रसारितौ अन्यथा स आचार्यो मृता भविष्यत् आचार्येण शापोऽस्म क्षुल्लका यदत्तः हे दुरात्मन् त्वं स्त्रोतो विनश्यसि अथ स क्षुलक प्राचार्योयं मिथ्यावादी भवतु इति विचिन्त्य पृथग् भूतस्तापसा अमे गत्वा तिष्ठन्ति तत्रा सन्ननदौकूले आतापनां कुरुते मार्गसमीपे साथ विलोकयति यदि शुद्ध प्राप्नोति तदा आहारं सहाति नीचेत्तदा तपः करोति तस्य आतापना प्रभावेण नदो अन्यत्र व्यू ढ़ाततोलोकरस्य कूलवालक इति नामकृतं इतश्च श्रेणिकं पुत्र काणिको राजा खपत्नौ पद्मावती प्रेरितः स्वभाव हल विहल पार्श्व जनक श्रेणिकार्पित दिव्य कुण्डल अष्टादश सरिक हार सेचनक हस्त्यादिकं वस्तुमार्गितवान् तौच सर्वलाला मातामह चेटक महाराज पार्श्व वैशालिनगरया गतौ कोणिकेन मातामहचेटक महाराज पाोत्सर्व वस्तु सहितौ तौ भ्रातरौ मागिता शरणागत वच्च पञ्चरविरुदं बहतातेन न प्रेषितौ ततो रुष्टः काणिक: समाराधित शक्र चमर प्रभावेण स्वजीवितं रक्षन् अमोघबाणमपि चेटक महाराज संग्राम निर्जित्य विशालिं नगरी मध्ये लिप्तवान् सज्जित वप्राञ्चतां वैशालिं नगरों स कौणिकी रोधयतिस्म नगरी मध्यस्थित श्रीमुनि सुव्रतस्वामिस्त प प्रभावात् तां नगरौं ग्रहोतुं न शक्नोति ततो बहुना कालेन देव तयैवमाकाशे भणितं । समण जह कूलवालए मागहि अङ्गाणि अंरमिस्मए रायायचसोगचन्दए नगरौनो दुख कद भाजसी तैकहिवा लागो जिवारे ए स्तम्भ उपाडौनाखस्यो तिवारी कटक पाछो भाजसौ एहवी लोकाने की कोणिकनाकटकने सङ्कत किधी अमुकडी वेलाई एक मुकाम पाछो देज्यो इम कही नगरलोक पासे स्तभखलाववा माद्यो जहवे लोक पायानी इंटकाढिवा मांडी तेहवे संकेत वधकटक पाछो गयो तिवारी लोकामे चमत्कार उपनी सर्व स्तंभखणनाख्या कोणिक पाको दलबादल लेइ विशालालोवौ कोणिकनौ प्रतिज्ञा पूरी हुइ हार देवताइ संहर लौधो हाथी खाहिमाहि मुओ कुलवालुओ मरि दुरगति गयो एदृष्टांत जाणो गुरूनो अविनौतपणोन करणा१ इति कुलवालुवा
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राय धनपतसिंघ बाहादुर का आ. सा. उ. ४१ मा भाग
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