Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur
View full book text
________________
उ टौका
नकुपिज्जा खन्ति मेविज पण्डिए खुइहिं सहसंसमि हासकोडच्च वज्जए ८ व्याख्या पुनर्विनयीसाधुः अनुशासिती गुरुभिः कठोरवचनै स्तर्जितो पिहितं मन्यमानः सन् न कुप्येत् कोपं न कुर्यात् पण्डितस्तत्वज्ञः शान्ति सेवेत क्षमा कुर्वीत पुनः सुसाधु क्षुः बालैः सह अधवा क्षुद्रः पार्श्वस्यादिमि भन्न धर्मः सहसं सर्गसङ्गतिं वर्जयेत् पुनर्हास्यं पुनः क्रौडाञ्च वर्जयेत् । सूत्र माय चण्डालियं कासौ बहुश्रमाय आलवे कालेणब अहिज्जित्ता तोझा इज्जएगगो १० व्याख्या भी शिष्यत्व' चण्डालोकं माकार्षीः चण्डः क्रोधस्तेन अलोक कषाय वशान्मिथ्या भाषणं माकार्षीः पुनर्बहुकं बहु एव बहुकं पाल जाल रूपं त्वं न आलपे: मायाः बहुभाषणात् बहवो दोषाः भवन्ति च पुनः काले प्रथम पौरुषो समये अधीत्य अध्ययनं कृत्वा तत: एककः एकाको सन् ध्यायेत् अधोतं अध्ययनं भवान् चिन्तयेत् एका भावतो द्रव्यतच भावतो रागद्देष रहितः द्रव्यतः पश पण्डकादिरहितोपाययेस्थित: १० सूत्र आहच्च चण्डालियं कान निहु विज्जकया इवि कड़ाडित्तिभासिज्जा अकईनोकड़ित्तिय ११ व्याख्याआहित्यकदाचित् क्रोधादिकषायवशात् अलौकंदुःवतंवत्वा
बज्जए ॥६॥ माय चंडालियं कासी बहुयं माय आलवे कालेणय अहिज्जित्ता तो झाडूज एक्को ॥१०॥
आहच्च चंडालियं कटु ननिन्हवेज्ज कयाइवि कडं कडित्ति भासिज्जा अकड नोकडित्तिय ॥११॥ मा गलियमेव जु• सहित के एहवो सिद्धांत सि सिखोने नि० स्वोयादिकनौ कथा तथा ८ निरर्थक शास्त्र ज्योतिष वैद्यक व० वजे के अ० सूत्रार्थ सौखवताकठन वचने पिण शिखामणिदेतान० कोपन कर ख. क्षमा से मेवे प. पंडित खं० बालक तथा पासत्यादिक सं० संघात सं• संसर्ग परिचय हा हास्य की क्रीडा व० वजे ८ मा० रखे चं. क्रोधादिकने विषे अ० झठो क. बोले ब. घणुर मारखे पो. बोले का. प्रथम पोरगी प्रमुख सिद्धान्त भणीने
राय धनपतसिंघ बाहादुर का आ० सं० उ०४१ मा भाम
भाषा

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 1112